SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रतिकूल होने से याचक को खाली हाथ लौटना पड़ता है। राजा की इच्छा को भण्डारी सफल नहीं होने देता । भण्डारी की तरह यह अन्तराय कर्म जीव की इच्छा को सफल नहीं होने देता । अन्तराय कर्म के दो भेद कहे हैं १. वर्तमान में मिलने वाली वस्तु जिस कर्म से नहीं मिलती वह प्रत्युत्पन्न विनाशी अन्तराय कर्म है । पाठान्तर से वर्तमान में प्राप्त वस्तु का नाश करने के स्वभाव वाला प्रत्युत्पन्न विनाशी अन्तराय कर्म है । २. भविष्यकाल में मिलने योग्य वस्तु के मार्ग को जो रोके वे पिहित आगामी पथ अंतराय है। कहीं कहीं आगामिपन्था पाठ है । कहीं कहीं 'आगमपहं' पाठ है जिसका अर्थ है - लाभ का मार्ग । - - स्थान २ उद्देशक ४ दुविहा मुच्छा पण्णत्ता तंजहा पेज्जवत्तिया चेव दोसवत्तिया चेव । पेज्जवत्तिया मुच्छा दुविहा पण्णत्ता तंजहा माए चेव लोभे चेव । दोसवत्तिया मुच्छा दुविहा पण्णत्ता तंजहा कोहे चैव माणे. चेव । दुविहा आराहणा पण्णत्ता तंजहा धम्मियाराहणा चेव केवलिआराहणा चेव । धम्मियाराहणा दुविहा पण्णत्ता तंजहासुयधम्माराहणा चेव चरित्तधम्माराहणा चेव । केवलिआराहणा दुविहा पण्णत्ता तंजहाअंतकिरिया चेव कप्पविमाणोववत्तिया चेव । दो तित्थयरा णीलुप्पलसमा वण्णेणं पण्णत्ता तंजहा - मुणिसुव्वए चेव अरिट्ठणेमी चेव । दो तित्थयरा पियंगुसमाणा वण्णेणं पण्णत्ता तंजहा - मल्ली चेव पासे चेव । दो तित्थयरा पउमगोरा वण्णेणं पण्णत्ता तंजहा - पउमप्यहे चेव वासुपुण्जे चेव । दो तित्थयरा चंदगोरा, वण्णेणं . पण्णत्ता तंजहा - चंदप्पभे चेव पुप्फदंते चेव ॥ ५२ ॥ कठिन शब्दार्थ - मुच्छा मूर्च्छा, पेज्जवत्तिया - प्रेम प्रत्यया, दोसवत्तिया - द्वेष प्रत्यया, धम्मियाराहणा - धार्मिक आराधना, केवलि आराहणा- केवलि आराधना, अंतकिरिया - अन्तक्रिया, कप्पविमाणोववत्तिया - कल्पविमानोपपातिका, णीलुप्पलसमा नील कमल के समान नीले वर्ण के, पिरंगुसमाणा - प्रियंगु वृक्ष के समान हरे वर्ण के, पउमगोरा चन्द्रमा के समान श्वेत वर्ण वाले। रक्तं कमल के समान, चंदगोरा Jain Education International - प्रेमप्रत्यया अर्थात् प्रेम के कारण होने भावार्थ - मूर्च्छा दो प्रकार की कही गई है यथा वाली और द्वेषप्रत्यया अर्थात् द्वेष के कारण होने वाली । प्रेम प्रत्यया मूर्च्छा दो प्रकार की कही गई है यथा माया और लोभ । द्वेषप्रत्यया मूर्च्छा दो प्रकार की कही गई है यथा क्रोध और मान । आराधना दो प्रकार की कही गई है यथा धार्मिक आराधना यानी श्रुत चारित्र धर्म का पालन करने वाले साधुओं की आराधना और केवल आराधना अर्थात् श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मन:पर्ययज्ञानी और केवलज्ञानी इनकी आराधना । धार्मिक आराधना दो प्रकार की कही गई है यथा श्रुतधर्म की - - For Personal & Private Use Only १३३ - - www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy