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स्थान २ उद्देशक ४
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णीयागोए चेव। अंतराइए कम्मे दुविहे पण्णत्ते तंजहा - पडुप्पण्णविणासिए चेव, पिहियागामिपहं॥५१॥
कठिन शब्दार्थ - देसणाणावरणिज्जे - देश ज्ञानावरणीय, सव्वणाणावरणिजे - सर्व ज्ञानावरणीय, दरिसणावरणिजे - दर्शनावरणीय, सायावेयणिजे - साता वेदनीय, असायावेयणिजेअसाता वेदनीय, दंसणमोहणिजे - दर्शन मोहनीय, चरित्तमोहणिजे - चारित्र मोहनीय, अद्धाउए - अद्धा आयुष्य (कायस्थिति), भवाउए - भवायुष्य (भवस्थिति) सुहणामे - शुभ नाम, असुहणामे - अशुभ नाम, उच्चागोए - उच्चगोत्र, णीयागोए - नीच गोत्र, अंतराइए - अन्तराय, पडुप्पण्णविणासिए- प्रत्युत्पन्न विनाशी, पिहियागामिपहं - पिहितागामिपथ।
भावार्थ - ज्ञानावरणीय कर्म दो प्रकार का कहा गया है यथा - देश ज्ञानावरणीय और सर्व ज्ञानावरणीय। इसी प्रकार दर्शनावरणीय कर्म भी दो प्रकार का है। यथा - देश दर्शनावरणीय और सर्व दर्शनावरणीय। वेदनीय कर्म दो प्रकार का कहा गया है यथा - साता वेदनीय और असाता वेदनीय। मोहनीय कर्म दो प्रकार का कहा गया है यथा - दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय। आयु कर्म दो प्रकार का कहा गया है यथा - अद्धा आयुष्य अर्थात् कायस्थिति और भवायुष्य अर्थात् भवस्थिति। नाम कर्म दो प्रकार का कहा गया है यथा - शुभ नाम और अशुभ नाम। गोत्र कर्म दो प्रकार का कहा गया है यथा - उच्च गोत्र और नीच गोत्र। अन्तराय कर्म दो प्रकार का कहा गया है यथा - प्रत्युत्पन्न विनाशी यानी वर्तमान में मिलने वाली वस्तु में अन्तराय डाल देना और पिहितागामिपथ यानी आगामी काल में मिलने वाली वस्तु में अन्तराय डाल देना।
- विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में आठ कर्मों के दो-दो भेद कहे हैं। आठ कर्मों का स्वरूप इस प्रकार है - .. ....
१. ज्ञानावरणीय कर्म - ज्ञान के आवरण करने वाले कर्म को ज्ञानावरणीय कहते हैं। जिस प्रकार आंख पर कपडे की पट्टी लपेटने से वस्तुओं को देखने में रुकावट हो जाती है उसी प्रकार ज्ञानावरणीय कर्म के प्रभाव से आत्मा को पदार्थों का ज्ञान करने में रुकावट पड़ जाती है परन्तु यह कर्म आत्मा को सर्वथा ज्ञानशून्य अर्थात् जड़ नहीं कर देता है। जैसे घने बादलों से सूर्य के ढंक जाने पर भी सूर्य का, दिन रात बताने वाला प्रकाश तो रहता ही है। उसी प्रकार ज्ञानावरणीय कर्म से ज्ञान के ढक जाने पर भी जीव में इतना ज्ञानांश तो रहता ही है कि वह जड़ पदार्थ से पृथक् समझा जा सके। ज्ञान का जो देश-मतिज्ञान आदि चार का आवरण करता है वह देश ज्ञानावरणीय और सर्वकेवलज्ञान का जो आवरण करता है वह सर्व ज्ञानावरणीय है। पांच ज्ञानावरणीय कर्मों में सिर्फ एक केवल ज्ञानावरणीय सर्वघाती है और शेष चार कर्म देशघाती है।
२. दर्शनावरणीय - दर्शन अर्थात् सामान्य अर्थ बोध का आवरण करने वाले कर्म को
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