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________________ [11] पृष्ठ २४३ २४३ विषय पृष्ठ विषय पृथ्वी चलित होने के कारण २२२ | तीन-वलय २४० किल्विषिक देवों की स्थिति ___२२३ नैरयिक आदि की तीन समय की विग्रह गति २४० परिषद् के देवों की स्थिति २२४ प्रकृतित्रय का युगपत् क्षय २४३ प्रायश्चित्त और अनुद्घातिम २२४|त्रितारक नक्षत्र २४३ पारांचिक और अनवस्थाप्य २२५ | पन्द्रहवें एवं सोलहवें तीर्थङ्कर का अन्तर दीक्षा के अयोग्य व्यक्ति २२५ भगवान् महावीर के पुरुष युग और श्रुत-ज्ञान के अधिकारी, अनधिकारी २२५-२६ | युगान्तकर भूमि माण्डलिक पर्वत २२७ भगवान् महावीर के चौदह पूर्वधर मुनिवर २४३ तीन अति महान् - २२७ | चक्रवर्ती तीर्थङ्कर २४३ कल्प-स्थिति २२८ | ग्रैवेयक विमानों के प्रस्तट २४४ तीन शरीर वाले प्राणी . २२८-२९ जीवों द्वारा उपार्जित कर्म पुद्गल २४५ प्रत्यनीक वर्णन - २२९ तीन प्रदेशी स्कंध २४६ मातृ-पितृ-अंग २२९-३० चतर्थ स्थान : प्रथम उद्देशक महानिर्जरा महापर्यवसान . चार अन्त-क्रियाएँ २४७-५० पुद्गल-प्रतिघात २३१-३२ वृक्ष और मनुष्य २५१ चक्षु और चाक्षुष भिक्षु-भाषा २५२ तीन प्रकार का अभिसमागम २३२-३३ वस्त्र और मनुष्य २५२-५३ ऋद्धि-भेद २३३-३४ तीन गारव | पुत्र-भेद २५४ करण भेद सत्य और मनुष्य २५४ २३४ तीन प्रकार का धर्म . . कोरक और मनुष्य २५४-५५ व्यावृत्ति भेद घुण और भिक्षु तीन प्रकार का अन्त २३६ | तृण-वनस्पति-भेद जिन, केवली और अरिहन्त . २३६ नैरयिक की मनुष्य लोक में आगमनेच्छा २५८ दुरभिगन्ध सुरभिगन्ध लेश्याएँ २३७ भिक्षुणी और संघाटिका २५८ लेश्या-युक्त त्रिविध मरण २३७ | ध्यान-विश्लेषण २६०-२७३ अव्यवसित व्यवसित साधु के तीन स्थान २३८-३९ | देव-स्थिति और संवास २३०-३१ २३ २३४ २५६ २५८ २७३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004186
Book TitleSthananga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size10 MB
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