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विषय
पृष्ठ विषय पृथ्वी चलित होने के कारण २२२ | तीन-वलय
२४० किल्विषिक देवों की स्थिति ___२२३ नैरयिक आदि की तीन समय की विग्रह गति २४० परिषद् के देवों की स्थिति २२४ प्रकृतित्रय का युगपत् क्षय
२४३ प्रायश्चित्त और अनुद्घातिम २२४|त्रितारक नक्षत्र
२४३ पारांचिक और अनवस्थाप्य
२२५ | पन्द्रहवें एवं सोलहवें तीर्थङ्कर का अन्तर दीक्षा के अयोग्य व्यक्ति
२२५ भगवान् महावीर के पुरुष युग और श्रुत-ज्ञान के अधिकारी, अनधिकारी २२५-२६ | युगान्तकर भूमि माण्डलिक पर्वत २२७ भगवान् महावीर के चौदह पूर्वधर मुनिवर
२४३ तीन अति महान् - २२७ | चक्रवर्ती तीर्थङ्कर
२४३ कल्प-स्थिति २२८ | ग्रैवेयक विमानों के प्रस्तट
२४४ तीन शरीर वाले प्राणी . २२८-२९ जीवों द्वारा उपार्जित कर्म पुद्गल २४५ प्रत्यनीक वर्णन - २२९ तीन प्रदेशी स्कंध
२४६ मातृ-पितृ-अंग
२२९-३० चतर्थ स्थान : प्रथम उद्देशक महानिर्जरा महापर्यवसान .
चार अन्त-क्रियाएँ
२४७-५० पुद्गल-प्रतिघात
२३१-३२ वृक्ष और मनुष्य
२५१ चक्षु और चाक्षुष
भिक्षु-भाषा
२५२ तीन प्रकार का अभिसमागम
२३२-३३ वस्त्र और मनुष्य
२५२-५३ ऋद्धि-भेद
२३३-३४ तीन गारव | पुत्र-भेद
२५४ करण भेद
सत्य और मनुष्य
२५४ २३४ तीन प्रकार का धर्म . .
कोरक और मनुष्य
२५४-५५ व्यावृत्ति भेद
घुण और भिक्षु तीन प्रकार का अन्त
२३६ | तृण-वनस्पति-भेद जिन, केवली और अरिहन्त . २३६ नैरयिक की मनुष्य लोक में आगमनेच्छा २५८ दुरभिगन्ध सुरभिगन्ध लेश्याएँ २३७ भिक्षुणी और संघाटिका
२५८ लेश्या-युक्त त्रिविध मरण २३७ | ध्यान-विश्लेषण
२६०-२७३ अव्यवसित व्यवसित साधु के तीन स्थान २३८-३९ | देव-स्थिति और संवास
२३०-३१
२३
२३४
२५६
२५८
२७३
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