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त्री स्थानांग सूत्र
६. स्थिरीकरण - धर्म से डिगते प्राणी को धर्म में स्थिर करना ७. वात्सल्य - अपने धर्म और साधर्मियों से प्रेम रखना ८. प्रभावना - वीतराग प्ररूपित धर्म की उन्नति करना, प्रचार करना तथा कृष्ण वासुदेव और श्रेणिक राजा के समान प्रभावना (प्रकाशित) करना।
३. चारित्राचार - ज्ञान एवं श्रद्धा पूर्वक सर्व सावध योगों का त्याग करना चारित्र है। चारित्र का सेवन करना चारित्राचार है। चारित्राचार के आठ भेद हैं - १. ईर्यासमिति. २. भाषा समिति ३. एषणा समिति ४. आदान भंड मात्र निक्षेपणा समिति . ५. उच्चार प्रस्रवण खेल जल्ल सिंघाण परिस्थापनिका समिति ६. मन गुप्ति ७. वचन गुप्ति ८. काय गुप्ति।
४. तप आचार - इच्छा निरोध रूप अनशन आदि तप का सेवन करना तप आचार है। वप.. आचार के १२ भेद हैं - १. अनशन २. ऊणोदरी ३. भिक्षाचरी ४. रस परित्याग ५. कायक्लेश ६. प्रतिसंलीनता ७. प्रायश्चित्त ८. विनय ९. वैयावृत्य १०. स्वाध्याय ११. ध्यान और १२. व्युत्सर्ग।
. ५. वीर्य्याचार - अपनी शक्ति का गोपन न करते हुए धर्मकार्यों में यथाशक्ति मन, वचन, काया द्वारा प्रवृत्ति करना वीर्याचार है। वीर्याचार के तीन भेद हैं-१. धर्मकार्य में बलवीर्य को छिपावे नहीं २. उपरोक्त ज्ञानाचार आदि के ३६ भेदों में उद्यम करे ३. शक्ति के अनुसार धर्म कार्य करे।
ये सभी मिला कर आचार के (८+८+८+१२+३) ३९. भेद हुए।
प्रतिमा - प्रतिज्ञा विशेष को 'प्रतिमा' कहते हैं। विभिन्न प्रकार से प्रतिमाओं के दो दो भेद और अर्थ भावार्थ में बता दिये गये हैं।
सामायिक - सर्व सावध व्यापारों का त्याग करना और निरपद्य व्यापारों में प्रवृत्ति करना सामायिक है। अथवा सम अर्थात् रागद्वेष रहित पुरुष की प्रतिक्षण कर्म निर्जरा से होने वाली अपूर्व शुद्धि सामायिक है। सम अर्थात् ज्ञान, दर्शन,चारित्र की प्राप्ति सामायिक है। सामायिक दो प्रकार की कही है - १. अगार सामायिक - अगार (श्रावक) की अल्प काल की सामायिक को अगार सामायिक कहते हैं। अगार का अर्थ है घर। घर गृहस्थ में रहते हुए जिस सामायिक का पालन किया जाए वह अगार सामायिक कहलाती है। श्रावक दो करण तीन योग से अल्प समय के लिये सावध योगों का त्याग करता है। २. अनगार सामायिक - अनगार (साधु) की जीवन पर्यन्त की सामायिक अनगार सामायिक कहलाती है। इसमें साधु तीन करण तीन योग से यावज्जीवन सावध कार्यों का त्याग करता है। अर्थात् साधु का पंच महाव्रत रूप सर्वविरति चारित्र अनगार सामायिक है।
दोण्हं उववाए पण्णत्ते तंजहा - देवाणं चेव, णेरइयाणं चेव। दोण्हं उव्वट्टणा पण्णत्ता तंजहा - णेरइयाणं चेव, भवणवासीणं चेव। दोण्हं चयणे पण्णत्ते तंजहाजोइसियाणं चेव, वेमाणियाणं चेव। दोण्हं गब्भवक्कंती पण्णत्ता तंजहा - मणुस्साणं
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