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मद
विषय __ पृष्ठ| विषय .
पृष्ठ पल्योपम और सागरोपम काल १२४ योग-करण-भेद क्रोध आदि पापों के दो रूप
१२५ अल्पायु दीर्घायु के तीन कारण १४६-४७ सिद्ध एवं असिद्ध जीव
• १२६ / अशुभायु और शुभायु बन्ध के कारण १४६-४७ बाल-मरण, पण्डित-मरण १२६-१२९ गुप्ति और दण्ड भेद लोक एवं लौकिक पदार्थ
१३० | गर्दा-विश्लेषण बोधि और बोध, मोह एवं मूढ़ १३० |अनेक दृष्टियों से पुरुष-भेद १५०-१५१
आठ कर्मों की द्विविधता . १३०-१३१ मत्स्यों और पक्षियों के रूप १५१-१५२ मूर्छा और उसके रूप
१३३ स्त्री-पुरुष और नपुंसक भेद १५२-१५३ दो प्रकार की आराधना १३३ | तिर्यंच जीवों के रूप
. १५३ तीर्थङ्करों के अनुपम रूप का वर्णन १३४ लेश्या-दृष्टि से जीव-भेद
- १५४ सत्यप्रवाद पूर्व की दो वस्तु
१३४ | तारा-चलन और देवों के शब्दादि , १५५ दो तारों वाले नक्षत्र
-१३४ प्रकाश, अन्धकार एवं लवण और कालोद समुद्र . १३५ देव आगमन आदि के कारण सुभूम और ब्रह्मदत्त का नरकावास १३५/तीन का प्रत्युपकार दुःशक्य १५९-१६० देवों की स्थिति
१३६
उत्तम मध्यम और जघन्य काल . १६१ कल्प-स्त्रियाँ
१३६-३७ पुद्गल-क्रिया, उपधि और परिग्रह १६१ कल्पों में तेजोलेश्या वाले देव १३६-१३७ / सुप्रणिधान और दुष्प्रणिधान
१६२-१६३ देव-परिचारणा
| योनि-भेद अशुभ कर्म-पुद्गल
१३६-१३७ वनस्पति जीव
. .. . १६५ पुद्गल-स्कन्धों की अनन्तता।
कालस्थिति तथा उत्तम पुरुष १६६-१६७
तैजस्कायिक, वायुकायिक जीवों का आयु १६८ तृतीय स्थान : प्रथम उद्देशक ।
धान्यबीजों का स्थिति-काल १६८-६९ तीन इंन्द्र
__ १३९-१४० नारकियों का स्थिति-काल विकुर्वणा के तीन भेद
१४१ नरकों में उष्ण-वेदना तीन प्रकार के नैरयिक १४१ लोक में तीन स्थान समान
१६९ देव-परिचारणा १४३ स्वाभाविक रसवाले तीन समुद्र
१६९ तीन प्रकार का मैथुन
१४३ | सातवीं नरक, सर्वार्थसिद्ध के अधिकारी १७१
१५६-१५७
१३६-१
१३७
१६९
समान
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