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________________ अध्ययन १ उद्देशक ७ ६७ भइणि त्ति वा दाहिसि मे इत्तो अण्णयरं पाणगजायं? से सेवं वयंतस्स परो वइजा-आउसंतो समणा! तुमं चेवेयं पाणगजायं पडिग्गहेण वा उस्सिंचियाणं उयत्तियाणं गिण्हाहि तहप्पगारं पाणगजायं सयं वा गिहिज्जा परो वा से दिज्जा फासुयं लाभे संते पडिगाहिज्जा॥४१॥ कठिन शब्दार्थ - तिलोदगं - तिलों का धोया हुआ धोवन, तुसोदगं - तुषों का धोया हुआ धोवन, जवोदगं - जौ का धोया हुआ धोवन, आयामं - ओसामण-उबले हुए चावलों पर से उतारा हुआ पानी, सोवीरं - आंछ-छाछ के ऊपर का पानी, सुद्धवियडं - उष्ण पानी (अचित्त जल) तुमं चेवेयं - तुम स्वयं ही, पडिग्गहेण - अपने पात्र से, उस्सिंचियाणं - उलीच कर, उयत्तियाणं - नितार कर। . भावार्थ - साधु या साध्वी गृहस्थ के घर तिलों का धोया हुआ धोवन, तुषों का धोया हुआ धोवन, जौ का धोया हुआ धोवन, चावलों पर से उतारा हुआ धोवन (ओसामण), छाछ के ऊपर का पानी, उष्ण पानी या इसी प्रकार का अन्य कोई प्रासुक अचित्त जल देखकर पूर्व में ही गृहपति को कहे कि हे आयुष्मन्! या हे बहिन! इस प्रकार के पानी में से थोड़ा पानी मुझे दोगे? ऐसा कहने वाले साधु को कदाचित् गृहस्थ इस प्रकार कहे कि हे आयुष्मन् श्रमण! तुम स्वयं ही अपने पात्र से या पानी के पात्र को उलीच कर, उल्टा कर पानी ले लो। इस प्रकार का प्रासुक जल मिलने पर साधु स्वयं ले ले या अन्य कोई दे तो भी ले ले। ... विवेचन - आहार की तरह पानी भी जीवन के लिए आवश्यक है। प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि - साधु साध्वी किस प्रकार का पानी ग्रहण करे? प्रस्तुत सूत्र में नौ तरह के पानी का नामोल्लेख किया गया है - १. आटे के कठौती आदि बर्तनों का धोया हुआ धोवन २. तिलों का धोया हुआ पानी ३. चावलों का धोया हुआ पानी ४. जिस पानी में उष्ण पदार्थ-शाक आदि ठंडे किये हुए हो वह पानी ५. तुषों का धोया हुआ पानी ६. यवों का धोया हुआ पानी ७. उबले हुए चावलों पर से निकाला हुआ पानी ८. कांजी के बर्तनों का धोया हुआ पानी ९: उष्ण-गर्म पानी। इसके आगे 'अण्णयरं वा तहप्पगार' शब्द से यह सूचित किया गया है कि इसी प्रकार के अन्य धोवन पानी जो पूर्णतया शस्त्र परिणत हो गये हों, जिनका वर्ण, गंध, रस बदल गया हो ऐसे निर्दोष और एषणीय प्रासुक जल साधु साध्वी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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