________________
आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध
अग्गपिंडंसि वा वायंसा संथडा सण्णिवइया पेहाए सइ परक्कमे संजयामेव परक्कमिज्जा णो उज्जुयं गच्छिज्जा ॥ ३१ ॥
कठिन शब्दार्थ - रसेसिणो रस की गवेषणा करने वाले, आहार के अभिलाषी, घासेसणाए - आहार के लिए, संथडे - एकत्रित हुए, सण्णिवइए - मार्ग में बैठे हुए, कुक्कुडजाइयं- कुक्कुट जाति के जीव, सूयरजाइयं सूअर जाति के जीव, अग्गपिंडंसिअग्रपिंड पर, वायसा - कौएं ।
५४
-
भावार्थ - साधु साध्वी को भिक्षार्थ जाते हुए मार्ग में आहार प्राप्ति की अभिलाषा से बहुत से प्राणी जैसे कुक्कुट जाति के द्विपद पक्षी या सूअर जाति के चतुष्पद पशु । अंग्रपिंड को खाने के लिए कौएं आदि एकत्रित होकर बैठे हुए हों तो साधु साध्वी उन्हें देखकर अन्य मार्ग के होते हुए, प्राणियों को भय और अंतराय उत्पन्न करने वाले ऐसे सीधे मार्ग से
न जाय ।
विवेचन - ऐसे मार्ग से जाने पर मुनि को देखकर वे पशु पक्षी भय के कारण इधर उधर भाग जाएंगे या उड़ जाएंगे। इससे उन्हें प्राप्त होने वाले भोजन में अंतराय पडेगी और साधु के निमित्त उनके उड़ने या भागने से वायुकायिक जीवों एवं अन्य प्राणियों की अयतना (हिंसा). होगी । अतः साधु को अन्य मार्ग के होते हुए ऐसे मार्ग से नहीं जाना चाहिये ।
सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा जाव पविट्ठे समाणे णो गाहावइकुलस्स वा दुवारसाहं अवलंबिय अवलंबिय चिट्टिज्जा, णो गाहावइकुलस्स दगच्छड्डणमत्तए चिट्ठिज्जा, णो गाहावइकुलस्स चंदणिउयए चिट्टिज्जा, णो गाहावइकुलस्स सिणाणस्स वा, वच्चस्स वा, संलोए सपडिदुवारे चिट्टिज्जा णो गाहावइकुलस्स आलोयं वा, थिग्गलं वा, संधिं वा, दगभवणं वा, बाहाउ पगिज्झिय परिज्झिय अंगुलिया वा उद्दिसिय उद्दिसिय उण्णमिय उण्णमिय अवणमिय अवणमिय णिज्झाइज्जा णो गाहावई अंगुलियाए उद्दिसिय उद्दिसिय जाइज्जा, णो गाहावई अंगुलिया चालिय चालिय जाइज्जा, णो गाहावई अंगुलियाए तज्जिय तज्जिय जाइज्जा, णो गाहावई अंगुलियाए उक्खुलंपिय उक्खुलंपिय जाइज्जा, णो गाहावई वंदिय वंदिय जाइज्जा, णो वयणं फरुसं वइज्जा ॥ ३२ ॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org