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अध्ययन १ उद्देशक ४ .
४३ .000000000000000000000000000000000000000••••••........... मजं - मद्य, मंसं - मांस, संकुलिं - जलेबी पुड़ी आदि, फाणियं - गुड़ का पानी, पूयं - पूवा आदि सिहरिणिं - श्री खंड आदि, भुच्चा - खा कर, पेच्चा - पीकर, पडिग्गहं - पात्र को संलिहिय - पोंछ कर, संमज्जिय - साफ कर, तत्थ - वह, इयरेयरेहिं - भिन्नभिन्न, कुलेहिं - कुलों में।
भावार्थ - किसी गांव में साधु के पूर्व परिचित या पश्चात् परिचित सगे सम्बन्धी निवास करते हों जैसे-गृहस्थ, गृहस्थ की पत्नी, गृहस्थ के पुत्र, पुत्रियाँ, पुत्रवधू, धाय माताएं, दास-दासी कर्मचारी या कर्मचारिणियां हों, ऐसे गांव में पहुँच कर मुनि ऐसा विचार करे कि मैं इन कुलों में पहले भिक्षा के लिए प्रवेश करूंगा, वहाँ मुझे मन इच्छित अन्न, रस युक्त आहार दूध, दही, मक्खन, घी, गुड, तेल, मधु, मद्य, मांस तिलपपडी जलेबी आदि, गुड़ का पानी, पूड़ी, बूंदी, श्री खंड आदि उत्तम भोजन मिलेगा, उस भोजन को पहले खा पीकर पात्रों को पोंछकर साफ कर रख दूंगा। तत्पश्चात् अन्य साधुओं के साथ आहार-पानी के लिये गृहस्थों के घरों में प्रवेश करूंगा। इस प्रकार का विचार करने से साधु दोष का पात्र होता है, उसे माया कपट का दोष लगता है एवं भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन होता है। अतः साधु को ऐसा नहीं करना चाहिए।
साधु को चाहिए कि वह भिक्षा के समय अन्य साधुओं के साथ ही भिन्न-भिन्न कुलों से सामुदानिक भिक्षा ग्रहण करे और निर्दोष आहार का सेवन करे।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में स्थिरवास रहने वाले मुनियों के पास विहार करते हुए आए हुए अतिथि मुनियों के साथ उन्हें कैसा व्यवहार करना चाहिए इसका निर्देश किया गया है। साधु का कर्तव्य है कि वह नवागन्तुक मुनियों के साथ अभेद वृत्ति रखे उनके साथ किसी तरह का छल कपट नहीं करे। .. ____प्रस्तुत सूत्र में उल्लिखित खाद्य पदार्थों में मद्य एवं मांस का भी उल्लेख किया गया है। इसका समाधान यह है कि दोनों पदार्थ अभक्ष्य होने के कारण सर्वथा अग्राह्य है। आगमों में जगह-जगह इसका स्पष्ट रूप से निषेध किया गया है। संभव है कि प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त उभय शब्द अन्य अर्थ के संसूचक हो। . वृत्तिकार ने प्रस्तुत सूत्र की व्याख्या करते हुए कहा है कि मद्य मांस की व्याख्या छेद सूत्र के अनुसार समझनी चाहिए। कोई अत्यधिक प्रमादी साधु पूर्व के संस्कारों के कारण अति गृद्धि एवं स्वाद आसक्ति के कारण इनका सेवन न करे, इसके लिए इसका उल्लेख
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