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________________ अध्ययन १ उद्देशक ४ किसी दूसरे को नहीं दिया गया है तो साधु गृहस्थ के घर में आहार पानी के लिए प्रवेश न करे किन्तु ऐसे एकान्त स्थान में जहाँ लोगों का आवागमन न हो और किसी की दृष्टि भी न पड़ती हो वहाँ जाकर ठहर जाय और जब देखे कि गायें दुही जा चुकी हैं भोजन पक चुका है अन्य को दिया जा चुका है तब यतना पूर्वक आहार पानी के लिये गृहस्थ के घर में प्रवेश करे । विवेचन - यदि किसी गृहस्थ के घर गायों का दूध निकाला जा रहा हो और साधु घर में प्रवेश करे तो संभव है गायें साधु के वेश को देखकर डर जाएं और साधु को मारने दौड़े तो साधु के या दोहने वाले व्यक्ति के चोट भी लग सकती है तथा साधु को आया देख कर गृहस्थ सोचे कि साधु को भी दूध देना होगा अतः वह गाय के बछड़े के लिए छोडे जाने वाले दूध का भी दोहन कर ले, इससे बछड़े को अन्तराय लगेगी अतः ऐसे समय साधु को गृहस्थ के घर में प्रवेश नहीं करना चाहिये । आहार पक रहा हो और उस समय साधु पहुँच जाय तो गृहस्थ उसे जल्दी पकाने का यत्न करेगा उससे तेउकाय के जीवों की विराधना होगी। इस तरह कई दोष लगने की संभावना होने के कारण साधु को ऐसे समय में गृहस्थ के घर में प्रवेश करने का निषेध किया हैं । भिक्खागा णामेगे एवमाहंसु-समाणा वा वसमाणा वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे खुड्डाए खलु अयं गामे संणिरुद्धाए णो महालए से हंता भयंतारो बाहिरगाणि गामाणि भिक्खायरियाए वयह ॥ ४१ कठिन शब्दार्थ - भिक्खागा - भिक्षु साधु मुनि, एवमाहंसु - इस प्रकार कहे, समाणावृद्धावस्थादि कारणों से स्थिरवास करने वाले, वसमाणा मास कल्प से विचरने वाले मुनि, अयं - यह, गामे- ग्राम, खुड्डाए - छोटा है, संणिरुद्धाए - संनिरुद्ध-रुके हुए हैं अर्थात् भिक्षा के लिये जाने के योग्य नहीं है, णो महालए यह गांव बड़ा नहीं है, भयंतारो - हे पूज्य मुनिवरो!, बाहिरगाणि बाहर के किसी, गामाणि गांव में, भिक्खायरियाए - भिक्षार्थ, वयह - पधारो । - Jain Education International - भावार्थ - वृद्धावस्थादि कारणों से स्थिरवास करने वाले या मासकल्प से विचरने वाले मुनि नये आने वाले मुनियों से इस प्रकार कहे कि - " हे पूज्य मुनिवरो! यह गांव छोटा है For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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