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- आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध
(मेहसूल) से रहित। ३. खेट- जिस के चारों तरफ धूलि का परकोटा हो। ४. कर्बट - कुनगर अर्थात् जहाँ किसी प्रकार का व्यापार धंधा नहीं हो सकता हो। ५. मडंब - जिस गांव के चारों तरफ, चारों दिशाओं में अढाई अढाई कोस तक कोई ग्राम न हो। ६. पतन (पाटन) - जहाँ जल मार्ग और स्थल मार्ग दोनों में से किसी एक से जाया जाता हो। ७. आकर - लोहे आदि की खान। ८. द्रोणमुख - जहाँ जल मार्ग और स्थल मार्ग दोनों से जाया जाता हो। ९. निगम - जहाँ महाजनों (व्यापारियों) की वसति अधिक हो। १०. आश्रम- संन्यासियों के रहने का स्थान-तीर्थ स्थान। ११. सन्निवेश - जहाँ अनेक प्रकार के बर्तन मिलते हों अथवा पड़ाव। १२. राजधानी - जिस नगर में राजा स्वयं रहता हो। ..
संखडी में जाने से कौन से दोष लग सकते हैं इसका उल्लेख करते हुए सूत्रकार कहते हैं -
संखडिं संखडि पडियाए. अभिधारेमाणे आहाकम्मियं वा, उद्देसियं वा, मीसजायं वा, कीयगडं वा, पामिच्चं वा, अच्छिजं वा, अणिसिटुं वा, अभिहडं वा, आहटु दिजमाणं भुंजिजा। असंजए भिक्खुपडियाए खुड्डियदुवारियाओ महल्लिय दुवारियाओ कुज्जा, महल्लियदुवारियाओ खुड्डियदुवारियाओ कुजा, समाओ सिजाओ विसमाओ कुजा, विसमाओ सिज्जाओ समाओ कुज्जा, पवायाओ सिजाओ णिवायाओ कुजा, णिवायाओ सिज्जाओ पवायाओ कुज्जा, अंतो वा बहिं वा उवसयस्स हरियाणि छिंदिय छिंदिय दालिय दालिय संथारगं संथारेज्जा, एस विलुंगयामो सिज्जाए तम्हा से संजए णियंठे अण्णयरं वा तहप्पगारं पुरेसंखडिं वा पच्छासंखडिं वा संखडिपडियाए णो अभिसंधारिज्जा गमणाए॥
कठिन शब्दार्थ - असंजए - असंयति (गृहस्थ), भिक्खुपडियाए - साधु के लिए, खुड्डियदुवारियाओ - छोटे द्वारों को, महल्लिय दुवारियाओ - बड़े द्वारों वाला, कुजा - करता है, विसमाओ - विषम, समाओ - सम, सिजाओ - शय्या, वसति को, पवायाओवायु (हवा) वाली, णिवायाओ - निर्वात-वायु रहित, उवस्सयस्स - उपाश्रय के, अंतों - अंदर, बहिं - बाहर, हरियाणि- हरितकाय (हरियाली) का, छिंदिय - छेदन करके, दालियविदारण करके, संथारगं - संस्तारक को, संथारिजा - बिछाएगा, विलुंगयामो - अपरिग्रही (अकिंचन), संजय- संयत, णियंठे - निर्ग्रन्थ, पुरेसंखडिं - पूर्व संखडी-पुत्र जन्म, नाम
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