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अध्ययन १५
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करता हूँ, आत्मनिंदा करता हूँ, गुरु साक्षी से गर्दा करता हूँ और अपनी आत्मा को अदत्तादान से सर्वथा पृथक् करता हूँ।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में साधु साध्वियों के तीसरे महाव्रत का वर्णन किया गया है इस महाव्रत में साधक तीन करण तीन योग से अदत्तग्रहण-चोरी का त्याग करता है।
इसमें आये हुए अल्प आदि शब्दों का अर्थ इस प्रकार हैं -
१. अल्प - मूल्य की दृष्टि से अल्प जैसे - एक कौडी या जिसका मूल्य एक कोडी हो अथवा परिमाण की दृष्टि से अल्प जैसे एरण्ड की लकड़ी।
२. बहु (बहुत) - मूल्य की दृष्टि से बहुमूल्य जैसे-हीरा, पन्ना आदि। परिमाण से बहुत, बहुत संख्या। अर्थात् दो, तीन, चार आदि।
३. अणु (सूक्ष्म) - इमली का छोटा पत्ता। ४. स्थूल - लोह आदि का टुकड़ा। ५. सचित्त - शिष्य-शिष्या।
६. अचित्त - आहार, पानी, वस्त्र, पात्र आदि। साधु-साध्वी कुछ चीजें तो अचित्त ही लेते हैं सचित्त नहीं लेते। जैसे आहार, पानी, वस्त्र पात्र आदि। साधु-साध्वी कुछ वस्तु सचित्त ही लेते हैं अचित्त नहीं। जैसे-शिष्य (चेला) शिष्या (चेली) को भी तभी ग्रहण करना चाहिये जबकि उसके माता-पिता, संरक्षक, अभिभावक आदि की आज्ञा होने पर ही दीक्षा देनी चाहिये। अन्यथा अदत्तादान विरमण रूप तीसरे महाव्रत का भंग हो जाता है।
तस्स इमाओ पंच भावणाओ भवंति। तत्थिमा पढमा भावणा अणुवीइ मिउग्गहं जाई से णिग्गंथे, णो अणणुवीई मिउग्गहं जाई से णिग्गंथे केवली बूया अणणुवीई मिउग्गहं जाई से णिग्गंथे अदिण्णं गिण्हिज्जा, अणुवीइ मिउग्गहं जाई से णिग्गंथे णो अणणुवीइ मिउग्गहं जाई ति पढमा भावणा॥१॥ ... अहावरा दोच्चा भावणा अणुण्णविय पाणभोयणभोई से णिग्गंथे णो अणणुण्णविय पाणभोयणभोई केवली बूया, अणणुण्णविय पाणभोयणभोई से णिग्गंथे अदिण्णं भंजिज्जा, तम्हा अणुण्णविय पाणभोयणभोई से णिग्गंथे, णो अणणुण्णविय पाण भोयणभोई त्ति दोच्चा भावणा॥२॥ . अहावरा तच्चा भावणा, णिग्गंथे णं उग्गहंसि उग्गहियंसि एतावताव
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