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________________ ३४२ आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध ••••••••••••••••••••••••••••••••••rrrrrrrrrrrrrrrrrrrsite (झूठ) का सर्वथा त्याग करता हूँ। इस प्रकार मृषावाद विरमण रूप द्वितीय महाव्रत स्वीकार करके हे भगवन्! मैं पूर्वकृत मृषावाद का प्रतिक्रमण करता हूँ। आलोचना करता हूँ, आत्म साक्षी से निन्दा करता हूँ, गुरु साक्षी से गर्दा करता हूँ और अपनी आत्मा को मृषावाद से सर्वथा पृथक् करता हूँ। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में साधु साध्वियों के दूसरे महाव्रत का वर्णन किया गया है। इस महाव्रत में साधक तीन करण तीन योग से मृषावाद का त्याग करता है। : चार कारणों से झूठ बोला जा सकता है। इसके चार कारण ये हैं यथा - क्रोध, लोभ, भय और हास्य। इसी प्रकार मान और माया के वश होकर भी झूट बोला जा सकता है। इसलिये माया और मान को भी यहाँ ग्रहण कर लेना चाहिए। तस्स इमाओ पंच भावणाओ भवंति। तत्थिमा पढमा भावणा, अणुवीइभासी से णिग्गंथे, णो अणणुवीइभासी, केवली बूया अणणुवीइभासी से णिग्गंथे समावजिज मोसं वयणाए, अणुवीइभासी से णिग्गंथे, णो अणणुवीइभासी त्ति पढमा-भावणा॥१॥ अहावरा दोच्चा भावणा, कोहं परिजाणाइ से णिग्गंथे, णो कोहणे सिया, केवली बूया, कोहपत्ते कोहत्तं समावइज्जा मोसं वयणाए कोहं परिजाणाइ से णिग्गंथे, ण य कोहणे सियत्ति दोच्चा भावणा॥२॥ __ अहावरा तच्चा भावणा, लोभं परिजाणाइ से णिग्गंथे, णो य लोभणए सिया, केवली बूया, लोभपत्ते लोभी समावइज्जा मोसं वयणाए, लोभं परिजाणाइ से णिग्गंथे, णो य लोभणए सियत्ति तच्चा भावणा॥३॥ अहावरा चउत्था भावणा, भयं परिजाणाइ से णिग्गंथे, णो भयभीरुए सिया, केवली बूया भयप्पत्ते भीरू समावइज्जा मोसं वयणाए, भयं परिजाणाइ. से णिग्गंथे, णो भयभीरुए सिय त्ति चउत्था भावणा॥४॥ ___ अहावरा पंचमा भावणा, हासं परिजाणाइ से णिग्गंथे, णो य हासणए सिया, केवली बूया, हासपत्ते हासी समावइजा मोसं वयणाए, हासं परिजाणाइ से णिग्गंथे, णो य हासणए सिय त्ति पंचमा भावणा॥५॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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