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________________ ३३० आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध प्रश्न - इसका क्या कारण है ? उत्तर - आगमों में अनेक लब्धियों का वर्णन मिलता है। उनमें से प्रवचन सारोद्धार : नामक ग्रन्थ के २७० वें द्वार में अट्ठाईस लब्धियों के नाम संगृहीत कर बतलाये गये हैं। उनमें अवधिज्ञान, मन:पर्यवज्ञान और केवलज्ञान को भी लब्धियों में गिनाया गया है। ये सब लब्धियाँ साकारोपयोग (ज्ञानोप्योग) में ही उत्पन्न होती हैं, अनाकारोपयोग (दर्शनोपयोग) में नहीं। इस उत्पत्ति के क्रम से सब केवलज्ञानी भगवन्तों को प्रथम समय में ज्ञान और दूसरे समय में दर्शन उत्पन्न होता है और उनके उपयोग की प्रवृत्ति भी इसी क्रम से होती है। इस क्रम को बतलाने के लिये आगमों में "सव्वण्णू सव्वदरिसी" ऐसा ही पाठ मिलता है। तीर्थंकर भगवान् को केवलज्ञान होने पर वे सर्व प्रथम धर्मोपदेश देते हैं। उसको प्रथम देशना कहते हैं। उनकी देशना में बारह प्रकार की परिषद होती है। भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देव ये चार प्रकार के देव और चारों ही प्रकार की देवियाँ तथा मनुष्य-मनुष्यणी और तिर्यंच-तिर्यंचणी, ये बारह प्रकार की परिषद होती है। जृम्भिका ग्राम के बाहर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को केवलज्ञान हुआ। चारों प्रकार के देव और देवियाँ केवलज्ञान महोत्सव मनाने के लिए आये उनको देख कर जृम्भिका ग्राम की निवासी जनता भी उस. महोत्सव में शामिल होने के लिये उमड़ पड़ी। इस प्रकार बारह ही प्रकार की परिषद थी। प्रत्येक तीर्थङ्कर भगवान् की प्रथम देशना में सर्वविरति चारित्र अङ्गीकार करते ही हैं और यहाँ तक कि जिस तीर्थङ्कर के जितने गणधर होने होते हैं, उतने गणधर हो जाते हैं। परन्तु भगवान् महावीर स्वामी की प्रथम देशना खाली गयी। किसी ने सर्व विरति चारित्र अङ्गीकार नहीं किया, यह एक आश्चर्यभूत घटना हुई। स्थानाङ्ग सूत्र के दसवें स्थान में दस प्रकार के आश्चर्य बतलाये हैं जो कभी किसी अवसर्पिणी काल में अनन्तकाल से ये आश्चर्य (अछेरा) होते हैं। उसमें अभाविता-अभव्या परिषद नामक एक आश्चर्य है। जो कि भगवान् महावीर स्वामी की प्रथम देशना में घटित हुआ। यद्यपि बारह प्रकार की परिषद थी परन्तु सर्व विरति-चारित्र अङ्गीकार करने की योग्यता वाला एक भी व्यक्ति वहाँ नहीं था। इसलिये भगवान् महावीर स्वामी की प्रथम देशना खाली गयी। इसको अभाविता परिषद नामक आश्चर्य कहते हैं। प्रश्न - तीर्थङ्कर भगवान् जो धर्मोपदेश देते हैं वह वचन उच्चारण पूर्वक देते हैं या केवल अव्यक्त ध्वनि ही होती है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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