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अध्ययन १५
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ने उठाया। शक्रेन्द्र और ईशानेन्द्र भगवान् के दोनों तरफ खड़े थे और भगवान् के ऊपर चमर दुला रहे थे। उस समय देव और मनुष्य सभी के चेहरे पर उल्लास और हर्ष परिलक्षित हो रहा था और सब अपने आप को धन्य समझ रहे थे।
जिस समय भगवान् शिविका में बैठ कर जा रहे थे उस समय देव असुर किन्नर गन्धर्व आदि बड़े हर्ष के साथ अनेक प्रकार के बाजे बजा रहे थे और विभिन्न प्रकार के नाटक और नृत्य कर रहे थे सारा वातावरण हर्ष एवं उल्लास से भरा हुआ था। ऐसे उत्सव के समय में भी भगवान् शुभ अध्यवसास के साथ शान्त बैठे हुए थे। उस समय भगवान् के चौविहार छठभत्त (षष्ठ भक्त-बेला) की तपस्या थी।
तेणं कालेणं तेणं समएणं जे से हेमंताणं पढमे मासे पढमे पक्खे, मग्गसिर बहुले, तस्स णं मग्गसिरबहुलस्स दसमी पक्खेणं, सुव्वएणं दिवसेणं, विजएणं मुहुत्तेणं हत्थुत्तराणक्खत्तेणं जोगोवगएणं पाईणगामिणीए छायाए बिइयाए पोरिसीए छटेणं भत्तेणं अपाणएणं, एगसाडगमायाए चंदप्पहाए सिवियाए सहस्सवाहिणीए सदेवमणुया सुराए परिसाए समणिज्जमाणे समणिज्जमाणे उत्तरखत्तियकुंडपुरसंणिवेसस्स मझमझेणं णिगच्छइ णिगच्छित्ता जेणेव णायसंडे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता ईंसिं रयणिप्पमाणं अच्छोप्पेणं भूमिभागेणं सणियं सणियं चंदप्पहं सिवियं सहस्सवाहिणिं ठवेइ ठवित्ता सणियं सणियं चंदप्पहाओ सिवियाओ सहस्सवाहिणीओ पच्चोयरइ पच्चोयरित्ता सणियं सणियं पुरत्थाभिमुहे सीहासणे णिसीयेइ। आभरणालंकारं ओमुयइ, तओ णं वेसमणे देवे जण्णुपायपडिए (भत्तुव्वायपडिओ) समणस्स भगवओ महावीरस्स हंसलक्खणेणं पडेणं आभरणालंकारं पडिच्छइ, तओ णं समणे भगवं महावीरे दाहिणेणं दाहिणं, वामेणं वामं पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, तओ णं सक्के देविंदे देवराया समणस्स भगवओ महावीस्स जण्णुव्वायपडिए वयरामेणं थालेणं केसाई पडिच्छइ पडिच्छित्ता "अणुजाणेसि भंते" ति कट्ट खीरोयसायरं साहरइ, तओ णं समणे भगवं महावीरे दाहिणेणं दाहिणं, वामेणं वामं पंचमुट्ठियं लोयं करित्ता
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