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अध्ययन १५
३१७
कठिन शब्दार्थ - जरमरण विप्पमुक्कस्स - जरा मरण से विमुक्त अर्थात् बुढापा और मृत्यु से रहित, ओसत्तमल्लदामा - गूंथी हुई मालाओं से युक्त, वर-रयण रूवचिंचइयंश्रेष्ठ रत्नों की रूप राशि से चर्चित, महरिहं - महा मूल्यवान्, आलयमालमउडो - मालाओं तथा मुकुट से अलंकृत, भासुरबोंदी - देदीप्यमान शरीर वाले, खोमियवत्थ - क्षौमिक (कपास से निर्मित) वस्त्र, णियत्थो - पहनाए हुए थे, अज्झवसाणेण - अध्यवसाय से, चामराहिं - चामरों को, वीयंति - ढुलाते हैं, मणिरयणविचित्तदंडाहिं - मणि रत्नों से चित्रित दण्डों वाले।
भावार्थ - जरामरण से विमुक्त अर्थात् बुढ़ापा और मृत्यु से रहित तीर्थङ्कर भगवान् के लिए शिविका लाई गई जो जल और स्थल पर उत्पन्न होने वाले दिव्य फूलों और वैक्रिय लब्धि से निर्मित पुष्पमालाओं से अलंकृत थी॥१॥
उस शिविका के मध्य भाग में जिनेन्द्र भगवान् महावीर के लिये श्रेष्ठ रत्नों की रूप राशि से सुसज्जित तथा पादपीठिका आदि से युक्त महामूल्यवान् सिंहासन बनाया गया था॥ २॥ . . उस समय भगवान् महावीर श्रेष्ठ आभूषण धारण किये हुए थे, दिव्य माला और मुकुट पहने हुए थे, उन्हें क्षौम वस्त्र पहनाए हुए थे जिसका मूल्य एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ थी। इन सब से भगवान् का शरीर देदीप्यमान हो रहा था॥ ३॥
उस समय प्रशस्त अध्यवसाय से षष्ठभक्त (बेले) की तपस्या से युक्त शुभ लेश्याओं से विशुद्ध भगवान् शिविका में विराजमान हुए॥ ४॥
- जब श्रमण भगवान् महावीर स्वामी सिंहासन पर विराजमान हुए तब शक्रेन्द्र और ईशानेन्द्र उनके दोनों ओर खड़े होकर मणि रत्नादि से चित्रित दंडे वाले चामर भगवान् के ऊपर दुलाने लगे॥ ५॥
पुट्विं उक्खित्ता माणुसेहिं साहड्डरोमपुलएहिं। पच्छा वहंति देवा, सुर असुर गरुल णागिंदा॥६॥ पुरओ सुरा वहंति, असुरा पुण दाहिणमि पासंमि। अवरे वहति गरुला, णागा पुण उत्तरे पासे॥७॥ वणसंड व कुसुमियं, पउमसरो वा जहा सरयकाले। सोहइ कुसुमभरेणं, इय गगणयलं सुरगणेहिं॥८॥
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