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________________ ३११ अध्ययन १५ ..............................krrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrror उत्तर - संसार में जो भी धर्मात्मा और धर्मनिष्ठ पुरुष होते हैं उनके धर्म कार्य का अनुमोदन करने के लिए भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक चारों प्रकार के देव देवियाँ आती हैं वे अपना अहोभाग्य समझते हैं कि हमें धर्मात्मा पुरुषों के धर्मकार्य की अनुमोदना करने का अवसर मिला है। जैसा कि दशवैकालिक सूत्र में कहा है - "देवा वि तं णमंसंति जस्स धम्मे सया मणो" अर्थात् जिसका मन सदा धर्म में लगा रहता है उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। . . यद्यपि देव देवी भौतिक ऋद्धि सम्पत्ति में मनुष्य से बहुत आगे हैं किन्तु वे संयम अङ्गीकार नहीं कर सकते हैं इसलिये वे आध्यात्मिकता के स्वामी संयमी पुरुषों की सेवा में उनके संयम की सराहना करने के लिये आते हैं। तीर्थङ्कर भगवन्त तो चतुर्विध संघ के सर्वोत्कृष्ट शिरोमणी हैं उनके दीक्षा महोत्सव में देव देवी आवे, इसमें आश्चर्य ही क्या है। शास्त्रकार ने देवों के आगमन की गति का भी वर्णन किया है कि वे उत्कृष्ट शीघ्र चपल त्वरित दिव्य गति से आते हैं। क्योंकि उनके मन में तीर्थङ्कर भगवान् की दीक्षा में सम्मिलित होने की स्फूर्ति, श्रद्धा और उमङ्ग होती है। तओ णं सक्के देविंदे देवराया सणियं सणियं जाणविमाणं पठवेइ पठवित्ता सणियं सणियं जाणविमाणाओ' पच्चोत्तरइ पच्चोत्तरित्ता एगंतमवक्कमेइ एगंतमवक्कमित्ता महया वेउव्विएणं समुग्घाएणं समोहणइ, महया वेउव्विएणं समुग्घाएणं समोहणित्ता, एगं महं णाणामणि कणग रयण भत्तिचित्तं सुभं चारुकंतरूवं देवच्छंदयं विउव्वइ, तस्स णं देवच्छंदयस्स बहुमज्झदेसभाए एगं महं सपायपीढं सीहासणं णाणामणि-कणय रयणभत्तिचित्तं सुभं चारुकंतरूवं विउव्वइ विउव्वित्ता, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता समणं भगवं महावीरं गहाय जेणेव देवच्छंदए तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता, सणियं सणियं पुरस्थाभिमुहे सीहासणे णिसीयावेइ णिसीयावित्ता सयपाग सहस्सपागेहिं तेल्लेहिं अब्भंगेइ अब्भंगित्ता गंधकासाईएहिं उल्लोलेइ उल्लोलित्ता, सुद्धोदएणं मज्जावेइ मजावित्ता, जस्स Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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