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________________ प्रश्न - तीर्थ किसे कहते हैं ? उत्तर भगवती सूत्र के बीसवें शतक के आठवें उद्देशक में इस प्रकार का प्रश्नोत्तर आया है "तित्थं भंते! तित्थे तित्थगरे तित्थे ? गोयमा! अरहा ताव नियमा तित्थंगरेति । तित्थे पुण चडवण्णा इण्णे समणसंघे, तंजहा समणा समणीओ, सावया सावियाओ ।" अर्थ - गौतम स्वामी श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से पूछते हैं कि हे भगवन् ! तीर्थ किसे कहते हैं ? क्या तीर्थ को तीर्थ कहते हैं ? या तीर्थंकर को तीर्थ कहते हैं ? अध्ययन १५ उत्तर हे गौतम ! अर्हा (अरहन्त - तीर्थङ्कर) तो नियमित तीर्थङ्कर ही होते हैं। चार वर्णों से जो युक्त होता है उसे तीर्थ कहते हैं । यथा श्रमण (साधु) श्रमणी (साध्वी ) श्रावक और श्राविका । इन चार को तीर्थ कहते हैं क्योंकि ये स्वयं संसार समुद्र से तिरते हैं तथा इनका आश्रय लेने वाले दूसरों को भी संसार समुद्र से तिराते हैं । इस तीर्थ की स्थापना करने वाले को तीर्थङ्कर कहते हैं। प्रश्न - लोकान्तिक देव किसे कहते हैं ? - Jain Education International उत्तर पांचवें ब्रह्मलोक देवलोक के समीप होने से इन्हें लोकान्तिक देव कहते हैं । कुछ आचार्यों का यह भी मत है कि लोक अर्थात् संसार का अन्त करने वाले यानी एक भव करके मोक्ष जाने वाले होने के कारण इन्हें लोकान्तिक कहते हैं । यथा "लोकान्ते- संसारान्ते भवाः लोकान्तिकाः एकावतारत्वात् । " यह मान्यता आगमानुकूल प्रतीत नहीं होती है। प्राचीन धारणा तो इस प्रकार है कि . इनके मुखिया देव एक भवावतारी होते हैं । तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अभिणिक्खमणाभिप्पायं जाणित्ता भवणव वाणमंतर जोइसिय विमाणवासिणो देवा य देवीओ य सएहिं सएहिं रूवेहिं, सएहिं सएहिं णेवत्थेहिं, सएहिं सएहिं चिंधेहिं, सव्विडिए सव्वजुईए सव्वबलसमुदएणं सयाइं सयाइं जाणविमाणाइं दुरुहंति सयाई सयाई जाणविमाणाइं दुरुहित्ता, अहाबायराइं पोग्गलाई परिसाडेंति परिसाडित्ता अहासुहुमाई पोग्गलाई परियाइंति परियाइत्ता, उड्डुं उप्पयंति, उड्डुं उप्पइत्ता ताए उक्कट्ठाए सिग्घाए चवलाए तुरियाए दिव्वाए देवगईए अहेणं उवयमाणा उवयमाणा तिरिएणं असंखिज्जाइं दीवसमुद्दाई वीइक्कममाणा वीइक्कममाणा - ३०९ For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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