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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध
किसी शस्त्र विशेष से छेदन या भेदन करके उसमें से मवाद या रक्त निकाले तो साधुसाध्वी उसे मन से भी न चाहे और न वचन और काया से भी कराए।
१. सिया से परो कायाओ सेयं वा जल्लं वा णीहरिज वा विसोहिज वा णो तं सायए णो तं णियमे।। ___ २. सिया से परो अच्छिमलं वा कण्णमलं वा दंतमलं वा णहमलं वा णीहरिज वा विसोहिज्ज वा णोतं सायए णो तं णियमे।
३. सिया से परो दीहाई वालाई, दीहाइं रोमाई, दीहाइंभमुहाई, दीहाई कक्खरोमाइं, दीहाई वत्थिरोमाई, कप्पिज वा संठविज वा णो तं सायए णो तं णियमे।
४. सिया से परो सीसाओ लिक्खं वा जूयं वा णीहरिज वा विसोहिज वा णो तं सायए णो तं णियमे॥
कठिन शब्दार्थ - सेयं - स्वेद-पसीना, जल्लं - जल्ल-मैल, अच्छिमलं - आंख का मल-मैल, वालाई - बालों को, रोमाइं - रोमों को, भमुहाई - भौहों को, कक्खरोमाई - कांख के रोमों को, वत्थिरोमाइं - बस्ति (गुह्य प्रदेश) के रोमों को, कप्पिज - काटे, संठविज - संवारे, लिक्खं - लीखों को, जूयं - जुओं को।
भावार्थ - १. कदाचित् कोई गृहस्थ साधु साध्वी के शरीर से निकले पसीने या मैल युक्त पसीने को पौंछे या साफ करे तो साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे और न ही . वचन एवं काया से कराए। . २. कदाचित् कोई गृहस्थ साधु साध्वी के आँख का मैल, कान का मैल, दांत का मैल या नख का मैल निकाले तो साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे और न ही वचन एवं काया से कराए।
३. यदि कोई गृहस्थ साधु के सिर के लंबे बालों को, लंबे रोमों को, दीर्घ भौहों को, कांख के लम्बे रोमों को और गुह्य प्रदेश के दीर्घ रोमों को काटे या संवारे तो साधु साध्वी मन से भी न चाहे और न ही वचन एवं काया से कराए।
४. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के सिर से लीखें या जूओं को निकाले या सिर को साफ करे तो साधु साध्वी मन से भी न चाहे और न ही वचन एवं काया से कराए।
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