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अध्ययन १३
२७९
भावार्थ - १. कदाचित् कोई गृहस्थ पुरुष या स्त्री साधु साध्वी के शरीर पर हुए गंड (गांठ फोड़ा), अर्श (मस्सा), पुलक (छोटा फोडा) अथवा भगंदर को एक बार अथवा बार बार पोंछ कर साफ करे तो साधु उसे मन से भी न चाहे और वचन एवं काया से भी न कराए।
२. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के शरीर पर हुए गंड, अर्श, पुलक या भगंदर को दबाए, मर्दन करे या परिमर्दन करे तो साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे न वचन एवं काया से ही कराए। . ३. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के शरीर पर हुए गंड अर्श, पुलक या भगंदर पर तेल, घी, नवनीत या वसा चुपडे मले या मालिश करे तो साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे और न ही वचन व काया से करावे। ____४. यदि कोई गृहस्थ साधु के शरीर पर हुए गंड, अर्श, पुलक या भगंदर पर लोध, कर्क, चूर्ण या वर्ण से थोड़ा या बार-बार लेपन करे तो साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे न वचन और काया से कराए।
५. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के शरीर पर हुए गंड, अर्श, पुलक अथवा भगंदर को प्रासुक ठंडे या गर्म जल से एक बार या बार बार धोए तो साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे और न वचन एवं काया से कराए।
६. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के शरीर पर हुए गण्ड, अर्श, पुलक या भगंदर पर किसी एक प्रकार के या विविध प्रकार के विलेपनों से आलेपन या विलेपन करे तो साधु साध्वी मन से भी उसकी चाहना न करे और न वचन और काया से कराए। .
७. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के शरीर पर हुए गण्ड, अर्श, पुलक या भगंदर को किसी सुगन्धित पदार्थ से एक बार धूपित करे या बार-बार धूपित करे तो साधु साध्वी मन से भी उसकी चाहना न करे और न वचन और काया से कराए।
८. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के शरीर पर हुए गंड, अर्श, पुलक या भगंदर का किसी शस्त्र विशेष से छेदन करे या विशेष रूप से छेदन करे, तो साधु साध्वी उसे मन से भी न चाहे और न वचन और काया से कराए।
९. यदि कोई गृहस्थ साधु साध्वी के शरीर पर हुए गंड, अर्श, पुलक या भगन्दर का
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