________________
२३८
आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध oror................................................... अंबचोयगं वा अंबसालगं वा अंबडालगं वा भुत्तए वा पायए वा, से जं पुण जाणिज्जा अंबभित्तगं वा जाव अंबडालगं वा सअंडं जाव संताणगं अफासुयं जाव णो पडिगाहिज्जा।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण जाणिज्जा अंबभित्तगं वा जाव अप्पंडं जाव संताणगं अतिरिच्छछिण्णं वा अवोच्छिण्णं वा अफासुयं जाव णो पडिगाहिज्जा।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा से जं पुण जाणिजा, अंबभित्तगं वा जाव अप्पंडं जाव संताणगं तिरिच्छिछिण्णं वोच्छिण्णं फासुयं जाव पडिगाहिजा॥
कठिन शब्दार्थ - अतिरिच्छछिण्णं - तिरछा छेदन नहीं किया हुआ, अव्वोछिण्णं - अखंडित, अंबभित्तगं - अर्द्ध आम, अंबसालगं - आम्र का रस, अंबडालगं - आम्रफल के सूक्ष्म सूक्ष्म खण्ड।
भावार्थ - साधु या साध्वी यह जाने कि आम्रफल अण्डों से रहित यावत् मकडी के जालों से रहित है किन्तु तिरछे छेदन नहीं किये हुए हैं तथा जो अखंडित हैं तो उन्हें उसको अप्रासुक एवं अनेषणीय जान कर ग्रहण न करे। ___ जो अण्डों से रहित यावत् मकडी के जालों से रहित हैं, तिरछे कटे हुए हैं, खंड खंड किये हुए है उन्हें प्रासुक और एषणीय जान कर ग्रहण कर सकता है।
यदि साधु या साध्वी आम्रफल का अर्द्ध भाग आम की पेशी (फाड) आम की छाल, आम की गिरी अथवा आम का रस अथवा आम्र के सूक्ष्म सूक्ष्म खंड खाना या पीना चाहे परन्तु वे अण्डों यावत् मकडी के जालों से युक्त हो तो उनको अप्रासुक और अनेषणीय जान कर ग्रहण नहीं करे।
साधु या साध्वी आम्रफल को अथवा उसके आधे भाग यावत् आम के टुकड़ों को जो कि अंडादि से रहित हैं किंतु तिरछे छेदन किये हुए नहीं हैं और खण्ड खण्ड किये हुए नहीं है तो उसे अप्रासुक एवं अनेषणीय जान कर ग्रहण न करे।
साधु या साध्वी यह जाने कि आम का आधा भाग यावत् आम्रफल के सूक्ष्म खंड किये हुए हैं, अंडादि से रहित हैं तिरछे छेदन किये हुए है खण्ड खण्ड किये हुए हैं तथा परिपक्व होने से अचित्त हो गये हैं उन्हें प्रासुक एवं एषणीय जान कर ग्रहण कर सकता है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org