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________________ ११ अध्ययन १ उद्देशक १ .0000000000000000000000000000000000000000000000000000000 आदि से है। गृहस्थ से मतलब साधारण गृहस्थ नहीं लिया गया है किन्तु वह गृहस्थ लिया गया है जो गृहस्थों के घर भिक्षा मांगता है। जैसे कि ब्राह्मण सेवग आदि। - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहिया वियारभूमिं वा विहारभूमिं वा पविसमाणे वा णिक्खममाणे वा णो अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा परिहारिओ अपरिहारिएण वा सद्धिं बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा पविसेज्ज वा णिक्खमेज्ज वा॥ कठिन शब्दार्थ - बहिया - बाहर, वियारभूमिं - स्थंडिल भूमि में, विहारभूमिं - विहारभूमि-स्वाध्याय भूमि में, पविसमाणे - प्रवेश करता हुआ, णिक्खममाणे - निकलता हुआ। ____ भावार्थ - उग्रविहारी संयमी साधु या साध्वी स्थंडिल भूमि में या स्वाध्याय भूमि में प्रवेश करता हुआ या निकलता हुआ अन्यतीर्थिक साधुओं, गृहस्थों, पार्श्वस्थादि शिथिलाचारियों के साथ प्रवेश भी न करे और बाहर भी न निकले। विवेचन - शौच निवृत्ति के लिये बाहर जाने की जगह को स्थण्डिल भूमि कहते हैं। इसके लिये आगम में वियारभूमि (विचार भूमि) शब्द रूढ है और जहाँ बैठ कर स्वाध्याय किया जाता है उस एकान्त स्थान के लिए 'विहार भूमि' शब्द रूढ है। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे णो अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा परिहारिओ अपरिहारिएण वा सद्धिं गामाणुगामं दूइजिजा॥४॥ - कठिन शब्दार्थ - गामाणुगाम - ग्रामानुग्राम, दूइज्जमाणे - विचरते हुए, दूइजिजाविचरे। ...भावार्थ - संयमी साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विचरते हुए भी अन्यतीर्थी और भिक्षोपजीवी गृहस्थ तथा शिथिलाचारी साधुओं आदि के साथ एक गांव से दूसरे गांव न जावे। - विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में साधु साध्वी के लिए बताया गया है कि वह गृहस्थों के साथ अन्यमत के साधु संन्यासियों एवं पार्श्वस्थ साधुओं के साथ गृहस्थ के घर में, स्वाध्याय भूमि में और शौच के लिये बाहर स्थण्डिल भूमि में न जाए और न ही इनके साथ विहार करे, क्योंकि ऐसा करने से साधु के संयम में अनेक दोष लगने की संभावना रहती है। अन्य मत के भिक्षुओं के अधिक परिचय से साधु की श्रद्धा एवं संयम में शिथिलता एवं विपरीतता भी आ सकती है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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