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________________ २२४ आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध है। पात्र के भीतर कदाचित् क्षुद्र जीव जंतु हों अथवा बीज हो या हरी वनस्पति हो, इसलिए साधु साध्वियों को तीर्थंकरों की आज्ञा है कि पहले ही पात्र को भीतर और बाहर-चारों ओर से प्रतिलेखन करे अच्छी तरह से देखे। यदि वह अंडादि से युक्त हो तो उसे ग्रहण न करे। इत्यादि सभी आलापक कहने चाहिये। जैसे कि वस्त्रैषणा के विषय में कथन किया गया है उसी प्रकार पात्रैषणा के संबंध में जानना। इसमें इतना विशेष है कि - तैल से या घृत से अथवा नवनीत से वसा (चर्बी) से अथवा औषधि विशेष से या सुगंधित पदार्थों से यावत् अन्य किसी पदार्थ से पात्र. संस्पर्शित हुआ हो तो तथाप्रकार की स्थंडिल भूमि में जाकर प्रतिलेखन कर अर्थात् भूमि को देख कर उसे प्रमार्जित कर यतना पूर्वक पात्र को साफ करे यावत् धूप में सूखाए तक वस्त्रैषणा अध्ययन की तरह ही समझ लेना चाहिए। यही साधु साध्वियों का समग्र आचार है। जो साधु साध्वी रत्नत्रयी से युक्त पांच समितियों से समित है वे इस आचार को पालने का यत्न करे। इस प्रकार मैं कहता हूँ। ॥छठे अध्ययन का प्रथम उद्देशक समाप्त॥ .. छठे अध्ययन का द्वितीय उद्देशक से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइकुलं पिंडवाय पडियाए पविढे समाणे पुवामेव पेहाए पडिग्गहगं अवहट्टापाणे पमजिय रयं तओ संजयामेव गाहावइकुलं पिंडवाय पडियाए पविसिज वा णिक्खमिज वा। केवली बूया आयाणमेयं अंतो पडिग्गहर्गसि पाणे वा बीए वा हरिए वा परियावजिजा, अह भिक्खूणं पुष्वोवइट्ठा एस पइण्णा जाव जं पुवामेव पेहाए पडिग्गह अवह पाणे पनजिय रयं तओ संजयामेव गाहावाकुलं पिंडवायपडियाए पविसिज वा णिक्खमिज वा ॥१५३॥ कठिन शब्दार्थ - र - रज को, परियावजिजा - नाश हो जायगा। भावार्थ - साधु या साध्वी गृहस्थ के घर भिक्षा के लिए जाने से पहले अपने पात्र का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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