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अध्ययन ६ उद्देशक १
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भावार्थ - यदि कोई गृह नायक साधु साध्वी से इस प्रकार कहे कि-हे आयुष्मन् श्रमण! आप मुहूर्त पर्यंत यहीं ठहरें। जब तक हम अशनादि चारों प्रकार का आहार तैयार कर लेंगे अथवा उपसंस्कृत-बगार आदि देकर संस्कार युक्त बनाकर के आप के पात्र को भर देंगे क्योंकि साधु साध्वी को खाली पात्र देना अच्छा और उचित नहीं लगता। तब साधु साध्वी उसे इस प्रकार कहे कि-हे आयुष्मन् गृहस्थ! या भगिनी! मुझे आधाकर्मिक आहार पानी ग्रहण करना नहीं कल्पता। अतः मेरे लिए आहारादि को तैयार मत करो और उपसंस्कृत भी मत करो। यदि तुम मुझे पात्र देने की इच्छा रखते हो तो उसे ऐसे ही दे दो, साधु साध्वी के इस प्रकार कहने पर भी यदि गृहस्थ आहार आदि बना कर उससे पात्र को भर कर दे तो साधु साध्वी को उसे अप्रासुक और अनेषणीय जान कर ग्रहण नहीं करना चाहिए।
सिया से परो उवणित्ता पडिग्गहगं णिसिरिजा से पुव्वामेव आलोएजा आउसो त्ति वा भइणि त्ति वा तुमं चेव णं संतियं पडिग्गहगं अंतोअंतेणं पडिलेहिस्सामि, केवली बूया आयाणमेयं अंतो पडिग्गहगंसि पाणाणि वा बीयाणि वा हरियाणि वा अह भिक्खूणं एस पइण्णा जाव पुवामेव पडिग्गहगं अंतोअंतेणं पडिलेहिज्जा, सअंडाइं सव्वे आलावगा भाणियव्वा जहा वत्थेसणाए, णाणत्तं तिल्लेण वा घएण वाणवणीएण वा वसाए वा सिणाणाइ जाव अण्णयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि पडिलेहिय-पडिलेहिय पमजिय पमज्जिय तओ संजयामेव आमजिजा। ..
एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं जं सव्वदेहिं सहिएहि सया जइज्जासि त्ति बेमि॥१५२॥
॥ पाएसणाज्झयणे पढमो उद्देसो समत्तो॥ कठिन शब्दार्थ - उवणित्ता - लाकर, संतिय - विद्यमान।
भावार्थ - कदाचित् उस साधु साध्वी को गृहस्थ घर के भीतर से लाकर पात्र को देवे तो वह साधु साध्वी पहले ही उसे देखे और देख कर इस प्रकार कहे कि-हे आयुष्मन् । गृहस्थ! अथवा भगिनि। मैं तुम्हारे इस पात्र की अंदर बाहर चारों ओर से प्रतिलेखन करूँगा। क्योंकि केवली भगवान् ने बिना प्रतिलेखन किए पात्र लेने को कर्म बंधन का कारण बताया
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