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________________ ८ मूंग आदि की फली, अणभिक्कंत देखकर | भावार्थ - गृहस्थ के घर में प्रविष्ट हुआ साधु या साध्वी औषधि (गेहूँ आदि धान्य) के विषय में ऐसा जाने कि - यह सचित्त है ( शस्त्र परिणत नहीं हुई है) जिसकी योनि नष्ट नहीं हुई है, द्विदल दो या दो से अधिक भाग नहीं हुए हैं, जिसका तिर्यक् छेदन नहीं हुआ है, अचित्त नहीं हुई है तथा सचित्त अपक्व मूंग आदि की अभग्न फली को देखकर उसे . अप्रासुक और अनेषणीय मानता हुआ साधु-साध्वी प्राप्त होने पर भी उसे ग्रहण न करे । विवेचन प्रस्तुत सूत्र में औषध (गेहूँ आदि धान्य) ग्रहण करने के संबंध में वर्णन किया गया है। साधु-साध्वी को दी जाने वाली औषध सचित्त प्रतीत होती हो तो उसे ग्रहण नहीं करे। यदि वह सजीव नहीं है तथा पूर्णतया निर्जीव और निर्दोष है तो साधु साध्वी उसे ग्रहण कर सकते हैं। आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध - अनभिक्रान्त- जीवं, अभज्जियं- अभग्न, पेहाए - Jain Education International प्रस्तुत सूत्र में 'कसिणाओ' आदि पांच पदों से वनस्पति की सजीवता सिद्ध की है। यहाँ मूल में 'ओसहीओ' शब्द दिया है जिसका अर्थ टीकाकार ने 'औषधीः शालिबीजादिकाः' किया है। अर्थात् शालि, गेहूँ आदि बीज वाले धान्य । यहाँ पर चौबीस प्रकार के धान्यों को औषधि ( दवा) कहा है। रोग की ही दवा की जाती है। क्षुधा वेदनीय के उदय से भूख लगती है इसलिए भूख एक प्रकार का रोग है उस रोग को मिटाने के लिये एवं शान्त करने के लिये अनाज (धान्य) का सेवन किया जाता है इसलिए धान्य को औषधि कहा है। सेभिक्खू वा भिक्खुणी वा जाव पविट्ठे समाणे से जाओ पुण ओसहीओ जाणिज्जा - अकसिणाओ असासियाओ विदलकडाओ तिरिच्छच्छिण्णाओ वुच्छिण्णाओ तरुणियं वा छिवाडिं अभिक्कंतं भज्जियं पेहाए फासूयं एसणिज्जं तिमण्णमाणे लाभे संते पडिग्गाहिज्जा ॥ २ ॥ - कठिन शब्दार्थ - अकसिणाओ - अकृत्स्न- अपूर्ण (अचित्त-शस्त्र परिणत), असासियाओविनष्ट योनि, विदलकडाओ - जिसके दो टुकडे किये गये हों, तिरिच्छच्छिण्णाओ - तिर्यक् छेदन किया हो, वुच्छिण्णाओ - अचित्त-जीव से रहित, अभिक्कंतं - जीव रहित, भज्जियंभर्जित - मर्दित, फायं प्रासुक, एसणिज्जं एषणीय - निर्दोष । - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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