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अध्ययन ४ उद्देशक २
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कठिन शब्दार्थ - गाओ - गायों आदि को, दुज्झाओ - दुहने योग्य, दम्मे - यह बैल दमन करने-जोतने योग्य, गोरहा - छोटा बछड़ा, वाहिम - वहन करने योग्य, रहजोग्ग - रथ में जोतने योग्य।
भावार्थ - साधु या साध्वी विविध प्रकार की गौ-गायों तथा गो जाति के पशुओं को देखकर इस प्रकार नहीं कहे कि-ये गायें दुहने योग्य हैं, यह बैल दमन करने योग्य है, यह बछड़ा है, यह जोतने योग्य है, यह भार वहन करने योग्य है अथवा यह रथ में जोतने योग्य है इस प्रकार की सावद्य यावत् जीवोपघातक भाषा साधु साध्वी नहीं बोले।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा विरूवरूवाओ गाओ पेहाए एवं वइज्जा तंजहा- जुवं गवि त्ति वा, घेणु त्ति वा, रसवई त्ति वा, हस्से इ वा, महल्ले इ वा, महव्वए इवा, संवहणि त्ति वा, एयप्पगारं भासं असावज जाव अभिकंख भासिज्जा।
कठिन शब्दार्थ - जुवं गवे - युवा बैल, रसवई - दूध देने वाली, हस्से - ह्रस्व, महल्ले - महान्, महव्वए - बड़ी आयु वाला, संवहणि - बहुत भार उठाने वाला। ___ भावार्थ - संयम शील साधु या साध्वी नाना प्रकार की गायों और गो जाति के पशुओं को देख कर यदि बोलने का प्रयोजन हो तो इस प्रकार कह सकता है कि - यह बैल युवा है, यह गाय प्रौढ है, दूध देने वाली है, यह बैल छोटा है, यह बड़ा है, यह बड़ी आयु का है, यह शकट गाड़ी आदि के भार को उठाने वाला है, इस प्रकार की असावद्य (निरवद्य) यावत् जीवोपघात रहित भाषा साधु साध्वी बोल सकते हैं।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा तहेव गंतुमुजाणाई पव्वयाई वणाणि वा रुक्खा महल्ला पेहाए णो एवं वइज्जा, तंजहा - पासायजोग्गा इ वा, तोरणजोग्गा इवा, गिहजोग्गा इवा, फलिहजोग्गा इवा, अग्गलजोग्गा इवा, णावाजोग्गा इ वा, उदगजोग्गा इ वा, दोणजोग्गा इ वा, पीढ चंगबेर जंगल कुलिय जंतलट्ठी णाभि गंडी आसणजोग्गा इ वा, सयणजाण उवस्सयजोग्गा इ वा एयप्पगारं भासं सावजं जाव णो भासिज्जा।
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