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अध्ययन ४ उद्देशक २
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कठिन शब्दार्थ - उवक्खडियं - तैयार किया हुआ अर्थात् मसाले आदि देकर संस्कार युक्त पकाया हुआ।
- भावार्थ - साधु या साध्वी तैयार हुए अशन, पान, खादिम, स्वादिम आहार जो गृहस्थ ने पकाकर तैयार किया है उस आहार को देखकर साधु साध्वी इस प्रकार नहीं बोले कि - यह अच्छा बनाया हुआ है, बढिया बनाया हुआ है, सुन्दर रीति से बनाया हुआ है या कल्याणकारी है और करने योग्य है। साधु साध्वी इस प्रकार की सावद्य यावत् जीवोपघातक भाषा नहीं बोले।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा, उवक्खडियं पेहाए एवं वइजा तंजहा-आरंभकडे त्ति वा, सावजकडे त्ति वा, पयत्तकडे त्ति वा, भद्दयं भद्दे त्ति वा, ऊसढं ऊसढे त्ति वा, रसियं रसिए त्ति वा मणुण्णं मणुण्णे त्ति वा एयप्पगारं भासं असावजं जाव भासिज्जा॥१३७॥
कठिन शब्दार्थ - भयं - भद्र-सुखकारी, ऊसढं - उत्कृष्ट या ताजा अर्थात् वर्ण गंध · रसादि युक्त, मणुण्णं - मनोज्ञ, रसियं - सरस। .
भावार्थ - अशन, पान, खादिम, स्वादिम आहार जो गृहस्थ ने पका कर तैयार किया है उस चतुर्विध आहार को देखकर यदि कोई खास प्रयोजन उपस्थित हुआ हो अथवा गृहस्थ ने पूछ लिया हो तो साधु साध्वी इस प्रकार कह सकते हैं कि-यह आरंभ कृत है, सावद्यकृत है, प्रयत्न करके बनाया हुआ है तथा जो भद्र हो उसे भद्र, ताजा को ताजा, सरस को सरस और मनोज्ञ हो तो उसे मनोज्ञ कहे। इस प्रकार असावद्य यावत् जीवोपघात रहित निर्दोष भाषा का प्रयोग कर सकता है। बिना प्रयोजन तो आहार आदि के विषय में साधु साध्वी को मौन ही रखना चाहिए।
विवेचन - साधु साध्वी को आहारादि की प्रशंसा नहीं करनी चाहिये क्योंकि आहारादि छह काय जीवों के आरंभ से बनता है। अतः उसकी प्रशंसा या सराहना करना छहकाय जीवों की हिंसा की अनुमोदना करना है जबकि साधु हिंसा का तीन करण तीन योग से पूर्ण त्यागी होता है अतः साधु साध्वी को ऐसी सावद्य भाषा नहीं बोलनी चाहिये।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा मणुस्सं वा, गोणं वा, महिसं वा, मिगं वा, पसुं
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