________________
१८८
आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध rrowroorrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr सुटुकडे इ वा, साहुकडे इ वा, कल्लाणे इ वा, करणिज्जे इ वा, एयप्पगारं भासं सावजं जाव णो भासिज्जा॥
कठिन शब्दार्थ - वप्पाणि - खेतों की क्यारियाँ, सुक्कडे - अच्छा किया है, सुटुकडेबहुत सुन्दर किया है, साहुकडे - साधुकृत, कल्लाणे - कल्याणकारी, करणिज्जे - करणीयकरने योग्य। __भावार्थ - साधु अथवा साध्वी यद्यपि कई रूपों को देखते हैं जैसे कि खेतों की . क्यारियाँ, कोट किला यावत् घर आदि को देखकर उनके विषय में ऐसा नहीं. कहे कि - ये अच्छे बने हुए हैं, बहुत सुंदर बनाये हैं, सुन्दर कार्य किया हैं, यह कल्याणकारी है, यह करने योग्य है। साधु साध्वी इस प्रकार की सावद्य यावत् जीवोपघातक भाषा नहीं बोले।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जहा वेगइयाई रूवाइं पासिज्जा तं जहा - वप्पाणि वा जाव गिहाणि वा, तहावि ताई एवं वइज्जा तं जहा-आरंभकडे इ वा सावजकडे इ वा, पयत्तकडे इ वा, पासाइयं पासाइए इवा, दरिसणीयं दरिसणीए इ वा, अभिरूवं अभिरूवं त्ति वा पडिरूवं पडिरूवं त्ति वा एयप्पगारं भासं असावजं जाव भासिज्जा॥१३६॥
कठिन शब्दार्थ - आरंभकडे - आरंभ (हिंसा) कृत, सावजकडे - सावध कृत, पयत्तकडे - प्रयत्न कृत-प्रयत्नपूर्वक किया गया।
भावार्थ - साधु अथवा साध्वी कई रूपों को देखते हैं जैसे कि खेतों की क्यारियाँ कोट, किल्ला यावत् घर आदि को देख कर और प्रयोजन हो तो इस प्रकार कहे-'यह आरंभ से बनाया गया है, छह काय के जीवों की हिंसा रूप पाप से बनाया गया है, प्रयत्न करके बनाया गया है, यह रमणीय है, यह दर्शनीय है, जो रूप संपन्न हो उसे अभिरूप और जो प्रतिरूप हो उसे प्रतिरूप है। साधु साध्वी इस प्रकार की निरवद्य या जीवोपघात रहित भाषा का प्रयोग करे।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा, उवक्खडियं पेहाए तहावि तं णो एवं वइज्जा तं जहा-सुकडे इ वा, सुटुकडे इ वा, साहुकडे इ वा, कल्लाणे इ वा, करणिजे इ वा, एयप्पगारं भासं सावजं जाव णो भासिज्जा॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org