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________________ अध्ययन ४ उद्देशक १ १८३ .....................000000000000000...................* उसके नहीं सुनने पर इस प्रकार नहीं कहे-"अरे होल! अरे गोल! अरे चांडाल! अरे कुपक्ष! अरे घटदास! अरे कुत्ते! अरे चोर! अरे गुप्तचर! अरे कपटी! अरे झूठे! तूं ऐसा है अथवा 'तेरे माता पिता ऐसे हैं।" साधु साध्वी इस प्रकार की सक्रिय, कर्कश, कटुक, निष्ठुर, मर्म प्रकाशित करने वाली, आस्रवकारी, छेदकारी, भेदकारी, सावद्य और प्राणियों का घात करने वाली भाषा का प्रयोग न करे। विवेचन - होल और गोल ये दोनों शब्द किसी देश विदेश में अवज्ञा सूचक माने जाते हैं। . से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पुमं आमंतेमाणे आमंतिए वा अप्पडिसुणेमाणे एवं वइजा-अमुगे इ वा, आउसो त्ति वा, आउसंतारो त्ति वा, सावगे त्ति वा, उवासगे इ वा, धम्मिए त्ति वा, धम्मपियेत्ति वा एयप्पगारं भासं असावजं जाव अभूओवघाइयं अभिकंख भासिज्जा॥ कठिन शब्दार्थ - अमुगे - हे अमुक-उसका जो नाम हो उस नाम से, आउसो - हे आयुष्मन्!, आउसंतारो - हे आयुष्मंतो, सावगे - हे श्रावक, उवासगे - हे उपासक, धम्मिए - हे धार्मिक, धम्मपिये- हे धर्मप्रिय!। ___भावार्थ - साधु या साध्वी किसी पुरुष को बुलाते समय अथवा बुलाए जाने पर भी उसके नहीं सुनने पर ऐसा कहे-हे.अमुक व्यक्ति! हे आयुष्मन् ! हे आयुष्मंतो! हे श्रावक! हे उपासक! हे धार्मिक! हे धर्म प्रिय! इस प्रकार की निरवद्य भाषा यावत् भूतोपघात रहित भाषा विचार पूर्वक बोले। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इत्थिं आमंतेमाणे आमंतिए य अप्पडिसुणेमाणी णो एवं वइजा-होली इ वा गोली इ वा इत्थिगमेणं णेयव्वं॥ भावार्थ - साधु या साध्वी किसी स्त्री को बुलाते समय अथवा बुलाने पर भी वह नहीं सुने तो उसे इस प्रकार नहीं बोले-हे होली! हे गोली ! इत्यादि जितने सम्बोधन पुरुष के लिए कहे गये हैं उतने शब्दों को स्त्रीलिंग में यहाँ समझ लेना चाहिए। संयमशील साधु साध्वी इस प्रकार की सावद्य यावत् भूतोपघातिनी भाषा नहीं बोले। . से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इत्थिं आमंतेमाणे आमंतिए य अप्पडिसुणेमाणी एवं वइजा-आउसो त्ति वा भइणि त्ति वा भोई त्ति वा भगवई त्ति वा साविगे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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