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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध ••••••••••••••••••••••••.............................. प्रत्यक्ष वचन कहते हैं जैसे - यह देवदत्त है आदि १६. परोक्ष वचन - परोक्ष का बोधक वचन जैसे - वह देवदत्त है आदि। ___से एगवयणं वइस्सामीइ एगवयणं वइज्जा जाव परोक्खवयणं वइस्सामीइ परोक्ख वयणं वइज्जा इत्थी वेस पुरिसो वेस णपुंसग वेस, एयं वा चेयं अण्णं वा चेयं अणुवीइ णिट्ठाभासी समियाए संजए भासं भासिज्जा, इच्चेयाइं आययणाई उवाइकम्म॥
भावार्थ - जहां मुनि को एक वचन बोलना हो वहां एक वचन बोले यावत् परोक्ष वचन बोलना हो वहां परोक्ष वचन का प्रयोग करे। इसी तरह यह स्त्री है, यह पुरुष है, यह नपुंसक है, यह यथार्थ- वही है अथवा यह कोई अन्य-अन्यथा है-यह निर्णय कर सोच विचार कर भाषा समिति से युक्त हुआ साधु भाषा के दोषों का त्याग कर संयत वचन बोले।
अह भिक्खू जाणिज्जा चत्तारि भासज्जायाई तं जहा - १. सच्चमेगं पढमं भासज्जायं २. बीयं मोसं ३. तईयं सच्चामोसं ४. जं णेव सच्चं णेवं मोसं णेव ' सच्चामोसं असच्चामोसं णाम तं चउत्थं भासज्जायं॥
कठिन शब्दार्थ - सच्चामोसं - सत्य-मृषा अर्थात् मिश्रभाषा। •
भावार्थ - साधु को चार प्रकार की भाषा जाननी चाहिये। यथा - १. सत्य भाषा २. असत्य भाषा ३. सत्या मृषा भाषा और ४. असत्या अमृषा अर्थात् सत्यासत्य रहित व्यवहार भाषा। .. से बेमि-जे अईया, जे य पडुप्पण्णा , जे अणागया अरहंता भगवंतो सव्वे ते एयाणि चेव चत्तारि भासज्जायाई भासिंसु वा, भासंति वा, भासिस्संति वा, पण्णविंसु वा, पण्णविंति वा, पण्णविस्संति वा, सव्वाइं च णं एयाइं अचित्ताणि वण्णमंताणि गंधमंताणि रसमंताणि फासमंताणि चयोवचइयाई विप्परिणामधम्माई भवंतीति अक्खायाइं॥१३२॥
कठिन शब्दार्थ - भासिंसु - बोलते थे, भासंति - बोलते हैं, भासिस्संति - बोलेंगे, पण्णविंसु - प्ररूपणा की, पण्णविंति - प्ररूपणा करते हैं, पण्णविस्संति - प्ररूपणा करेंगे, अचित्ताणि - अचित्त, वण्णमंताणि - वर्ण युक्त, गंधमंताणि - गंध युक्त, रसमंताणि -
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