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________________ अध्ययन ४ उद्देशक १ भूतकाल वचन, पडुप्पण्णवयणं - प्रत्युत्पन्न वचन - वर्तमान काल का वचन, अणागवणंअनागत-भविष्यत् कालीन वचन, पच्चक्खवयणं प्रत्यक्ष वचन, परोक्खवयणं परोक्ष वचन । भावार्थ - संयमी साधु या साध्वी विचार पूर्वक निश्चय करके भाषा समिति का ध्यान रखता हुआ भाषा का प्रयोग करे जैसे कि एक वचन, द्विवचन बहुवचन, स्त्रीलिंग वचन, पुरुषलिंग वचन, नपुंसकलिंग वचन, अध्यात्म वचन, उपनीत - प्रशंसा युक्त वचन, अपनीतनिंदा युक्त वचन, उपनीत- अपनीत प्रशंसा युक्त निंदा युक्त वचन, अपनीत - उपनीत - निंदा युक्त और प्रशंसा युक्त वचन, भूतकाल, वर्तमान काल और भविष्यत् काल सम्बन्धी वचन, प्रत्यक्ष और परोक्ष वचन ये वचन के १६ प्रकार कहे हैं। विवेचन भाषा के दोषों से बचने के लिए सूत्रकार ने १६ प्रकार के वचनों का • उल्लेख किया है जो इस प्रकार हैं १. एक वचन - संस्कृत में वृक्षः, घटः, पटः आदि प्राकृत में- रुक्खो, घडो, पडो आदि २. द्विवचन - संस्कृत में वृक्षौ, घटौ, पटौ आदि, प्राकृत में द्विवचन नहीं होता है । ३. बहुवचन संस्कृत में - वृक्षाः घटाः पटाः आदि, प्राकृत मेंरुक्खा, घडा, पडा आदि । ४. स्त्रीलिंग वचन संस्कृत में - कन्या, वीणा राजधानी आदि, प्राकृत में- कण्णा, वीणा रायहाणी आदि । ५. पुरुषलिंग वचन - संस्कृत में - घटः पटः कृष्णाः साधुः आदि, प्राकृत में - घडो पडो कण्हो साहू आदि ६. नपुंसकलिंग वचन - संस्कृत मेंपत्रं ज्ञानं दर्शनं चारित्रं, प्राकृत में पत्तं णाणं, दंसणं, चारित्तं आदि ७. अध्यात्म वचन जिस वचन को बोलने का चित्त में निश्चय किया गया हो फिर उसको छिपाने के लिये अन्य वचन बोलने का विचार होने पर भी अकस्मात् वही वचन मुख से निकले उसे अध्यात्म वचन कहते हैं । ८. उपनीत वचन प्रशंसा युक्त वचन को उपनीत वचन कहते हैं। जैसे यह स्त्री रूपवती है । ९. अपनीत वचन निन्दा युक्त वचन जैसे यह स्त्री कुरूपा है । १०. उपनीत अपनीत वचन पहले प्रशंसा और बाद में निंदा युक्त वचन जैसे यह स्त्री रूपवती है परंतु व्यभिचारिणी है ११. अपनीत उपनीत वचन - पहले निंदा और बाद में प्रशंसा युक्त वचन जैसे यह स्त्री कुरूपा है परन्तु सदाचारिणी है १२. अतीतकाल भूतकाल के बोधक वचन को अतीतकाल कहते हैं जैसे- देवदत्त ने घडा बनाया था । १३.. • वर्तमानकाल वचन वर्तमान काल का बोधक वचन जैसे - करोति करता है, पठति पढ़ता है आदि १४. अनागतकाल वचन भविष्यकाल का बोधक वचन जैसे करिष्यति करेगा, पठिष्यति पढेगा आदि १५. प्रत्यक्ष वचन वचन प्रत्यक्ष के बोधक वचन को - Jain Education International - - - - - - - For Personal & Private Use Only - १७९ www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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