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________________ अध्ययन ३ उद्देशक १ वा जाव रज्जुए वा गहाय आकस्सिस्सामो णो से तं परिण्णं परिजाणिज्जा, तुसिणीओ उवेहिज्जा ॥ कठिन शब्दार्थ - आहर - लाओं । भावार्थ - नौका पर चढ़े मुनि को नौका पर सवार अन्य लोग इस प्रकार कहे कि आयुष्मन् श्रमण ! तुम नौका को आगे पीछे खींचने में, खेने या रस्सी से दृढ़ करने में समर्थ नहीं हो तो अमुक रस्सी मुझे लाकर दे दो, हम स्वयं नौका को खे लेंगे ( चलायेंगे), तो मुनि ऐसे वचनों को स्वीकार न करते हुए मौन रह कर बैठा रहे । से णं परो णावागओ णावागयं वइज्जा आउसंतो समणा ! एवं ता तुमं णावं आलित्तेण वा, पीढेण वा, वंसेण वा, वलएण वा, अवलुएण वा, वाहेहि, णो से तं परिणं परिजाणिज्जा, तुसिणीओ उवेहिज्जा ॥ कठिन शब्दार्थ - आलित्तेण - डांड से ( चप्पू से), पीढएण पटिये से, वंसेण बांस से, वलएण- वल्ली से, अवलुएण- अवलुक - नौका को चलाने का उपकरण विशेष से, वाहेहि - चलाओ। Jain Education International १५७ भावार्थ - नौकारूढ साधु साध्वी को नौका पर सवार अन्य व्यक्ति इस प्रकार कहे कि 'हे आयुष्मन् श्रमण ! तुम इस नौका को डांड से, पटिये से, बांस से, वल्ली से या अवलुक से आगे चलाओ।' उनके ऐसे वचनों को स्वीकार न करते हुए साधु साध्वी मौन ही रहे । से णं परो णावागओ णावागयं वइज्जा आउसंतो समणा ! एवं ता तुमं . णावाए उदयं हत्थेण वा पाएण वा मत्तेण वा पडिग्गहेण वा णावा उस्सिंचणेण वा उस्सिंचाहि णो से तं परिण्णं परिजाणिज्जा तुसिणीओ उवेहिज्जा ॥ कठिन शब्दार्थ - णावा उस्सिंचणेण नौका से जल निकालने के पात्र विशेष से, - - उस्सिंचाहि - पानी बाहर उलीचते रहो । भावार्थ - फिर नौकारूढ साधु साध्वी से कहे कि " हे आयुष्मन् श्रमण ! तुम नौका में आते हुए पानी को हाथ से, पैर से, बरतन से और नाव से जल निकालने (उलीचने) के - पात्र विशेष से पानी को बाहर निकालो" तो साधु साध्वी इस बात को भी स्वीकार न करते हुए मौन रहे । से णं परो णावागओ णावागयं वइज्जा आउसंतो समणा ! एवं तो तुमं For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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