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________________ अध्ययन २ उद्देशक ३ १४१ storrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr. भावार्थ - इसके पश्चात् दूसरी प्रतिमा यह है कि - साधु या साध्वी गृहस्थ आदि के यहां रखे हुए संस्तारक को देखकर ही उसकी याचना करे, उन्हें पूर्व में ही कहे कि - हे आयुष्मन् अथवा बहिन ! क्या तुम मुझे इन संस्तारकों में से किसी एक संस्तारक को दोगे? यदि निर्दोष और प्रासुक संस्तारक मिले तो उसे ग्रहण करे। यह दूसरी प्रतिमा है। अहावरा तच्चा पडिमा - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा जस्सुवस्सए संवसिज्जा जे तत्थ अहासमण्णागए तंजहा - इक्कडे इ वा जाव पलाले इ वा, तस्स लाभे संवसिज्जा तस्स अलाभे उक्कुडुए वा णेसज्जिए वा विहरिज्जा। तच्चा पडिमा। १०१॥. __कठिन शब्दार्थ - उक्कुडुए - उत्कुटुक आसन से, णेसज्जिए - पालथी (पद्मासन) से। भावार्थ - तीसरी प्रतिमा यह है कि - साधु अथवा साध्वी ने जिसके उपाश्रय में निवास किया हो (ठहरा हो) उसके यहां से ही पूर्वोक्त संस्तारकों में से कोई संस्तारक मिल जाय, तो उसे ग्रहण करना और यदि नहीं मिले तो उत्कुटुक (उकडू) आसन अथवा • पालथी (पद्मासन) आदि आसनों से रात्रि व्यतीत करना। यह तीसरी प्रतिमा है। अहावरा चउत्था पडिमा - से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहासंथडमेव संथारगं जाइज्जा तंजहा - पुढविसिलं वा कट्टसिलं वा अहासंथडमेव तस्स लाभे संते संवसिज्जा तस्स अलाभे उक्कुडुए वा णेसज्जिए वा विहरिज्जा। चउत्था पडिमा॥ भावार्थ - चौथी प्रतिमा यह है कि - साधु अथवा साध्वी पृथ्वी-शिला या काष्ट का संस्तारक जो पहले ही बिछा हुआ हो उसको ग्रहण करे, यदि इस प्रकार का संस्तारक नहीं मिले तो सम्पूर्ण रात्रि उकडू आसन या पद्मासन से व्यतीत करे, यह चौथी प्रतिमा है। इच्चेयाणं चउण्हं पडिमाणं अण्णयरं पडिमं पडिवज्जमाणे तं चेव जाव अण्णोण्णसमाहीए एवं च णं विहरंति॥१०३॥ कठिन शब्दार्थ - अण्णोण्णसमाहीए - परस्पर समाधि से। . भावार्थ - इन चार प्रतिज्ञाओं में से किसी भी प्रतिज्ञा को ग्रहण करने वाला मुनि, अन्य साधुओं की निंदा (हीलना) न करे कारण कि वे सभी साधु परस्पर समाधि पूर्वक जिनाज्ञा में विचरते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004185
Book TitleAcharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages382
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size8 MB
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