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________________ २२ BRRRRRRR __ आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) R RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRR पटमं अज्झयणं तइओ उद्देसो प्रथम अध्ययन का तीसरा उद्देशक प्रथम अध्ययन के दूसरे उद्देशक में पृथ्वीकायिक जीवों का वर्णन करने के बाद सूत्रकार इस तृतीय उद्देशक में अप्कायिक जीवों का वर्णन करते हैं। अप्कायिक जीवों को अभयदान देने वाला साधक कैसा होता है उसका लक्षण इस उद्देशक के प्रथम सूत्र में इस प्रकार बताया है : अनगार कौन? . ___ से बेमि, से जहावि अणगारे उज्जुकडे, णियागपडिवण्णे अमायं कुव्वमाणे वियाहिए। कठिन शब्दार्थ- उज्जुकडे - ऋजुकृत-सरलता युक्त, णियागपडिवण्णे - नियाग प्रतिपन्नमोक्षमार्ग को प्राप्त, अमायं - अमाया - कपट रहित, कुव्वमाणे - करता हुआ, अणगारेअनगार - घर रहित, वियाहिए - कहा गया है। भावार्थ - मैं कहता हूँ - जो ऋजुकृत - सरल आचरण वाला हो, नियाग प्रतिपन्न - रत्नत्रयी रूप मोक्षमार्ग को प्राप्त हो तथा जो अमायी - कपट रहित हो, वह अनगार कहा गया है। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में अनगार के लक्षण बताये गये हैं। अनगार शब्द का शाब्दिक अर्थ है-घर रहित। किंतु घर का त्याग करने मात्र से ही कोई अनगार नहीं बन जाता। वास्तविक अनगार की योग्यता को बताते हुए सूत्रकार ने निम्न तीन विशेषणों का प्रयोग किया है १. उज्जुकडे (ऋजुकृत) - उज्जुकडे शब्द की व्याख्या करते हुए टीकाकार ने कहा है - "ऋजुः-अकुटिलः संयमो दुष्प्रणिहितमनोवाक्काय निरोधः सर्व सत्वसंरक्षण प्रवत्तत्वावयैकरूपः" अर्थात् - सरल, कुटिलता से रहित, संयम मार्ग में प्रवृत्त, दुष्कार्य में प्रवृत्त मन, वचन और काय का निरोधक, समस्त प्राण, भूत, जीव, सत्त्व के संरक्षण में प्रवृत्तमान साधक. को 'ऋजु' कहते हैं। तात्पर्य यह है कि संयम मार्ग में प्रवृत्तमान साधक को अनगार कहा है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004184
Book TitleAcharang Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages366
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size7 MB
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