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नववा अध्ययन प्रथम उद्देशक - निर्दोष आहार चर्या
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२. अतिपात स्रोत - जिनसे अतिपातक- पाप होता है वे सब हिंसा आदि अतिपात है। अतिपात शब्द में केवल हिंसा ही नहीं असत्य, चोरी, मैथुन और परिग्रह का भी समावेश होता है। ये भी कर्मबंधन के स्रोत हैं।
मन, वचन, काया रूप योगों की प्रवृत्ति से भी शुभ या अशुभ कर्मों
३. योग स्रोत बंध होता है।
. सर्वज्ञ सर्वदर्शी भगवान् महावीर स्वामी ने इन कर्म बंधन के स्रोतों को अच्छी तरह जान कर कर्ममुक्ति के लिए संयमानुष्ठान रूप अनुपम क्रिया का कथन किया था।
(४७७)
अइवत्तियं अणाउटिं, सयमण्णेसिं अकरणयाए ।
जस्सित्थिओ परिण्णाया, सव्वकम्मावहाओ से अदक्खू ॥
कठिन शब्दार्थ - अइवत्तियं पाप से रहित, अणाउहिं - अनावुट्टि अहिंसा का, सव्वकम्मावहाओ - सब पाप कर्मों का कारण ।
भावार्थ . भगवान् ने स्वयं पाप से रहित निर्दोष अहिंसा का आचरण किया और दूसरों से भी हिंसा नहीं करने का उपदेश दिया। जिन्हें स्त्रियाँ - स्त्री संबंधी काम भोग के कटु परिणाम ज्ञात हैं उन भगवान् महावीर स्वामी ने देखा कि 'कामभोग सर्व पापकर्मों के आधारभूतउपादान कारण हैं।' ऐसा जानकर भगवान् ने स्त्री- संसर्ग का त्याग कर दिया था।
निर्दोष आहार चर्या
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कठिन शब्दार्थ
(४७८)
अहाकडं ण से सेवे, सव्वसो कम्मुणा य अदक्खू ।
जं किंचि पावगं भगवं, तं अकुव्वं वियडं भुंजित्था ।
अहाकडं
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आधाकर्मी आहार का, वियडं - प्रासुक, भुंजित्था
सेवन करते थे।
भावार्थ - भगवान् महावीर स्वामी ने देखा कि आधाकर्म आदि दोष युक्त आहार ग्रहण
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