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नववां अध्ययन - प्रथम उद्देशक - भगवान् की विवेक युक्त चर्या ३११ 8888888888@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@
भावार्थ - पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, निगोद-शैवाल आदि बीज और. नाना प्रकार की हरी वनस्पति एवं त्रसकाय को सब प्रकार से जान कर तथा ये सब सचित्त (चेतनावान् अस्तित्ववान्) हैं ऐसा विचार कर और समझ कर भगवान् महावीर स्वामी इन सबके आरंभ (हिंसा) का त्याग करके विजरते थे।
(४७४) अदु थावरा तसत्ताए, तसजीवा य थावरत्ताए। अदुवा सव्वजोणिया सत्ता, कम्मुणा कप्पिया पुढो बाला॥
कठिन शब्दार्थ - सव्वजोणिया - सभी योनियों में, कप्पिया - स्थित है अथवा रूप . रचते हैं।
भावार्थ - कर्मों के वशीभूत होकर स्थावर जीव त्रस रूप में अथवा त्रस जीव स्थावर के रूप में उत्पन्न होते हैं अथवा संसारी जीव सभी योनियों में उत्पन्न हो सकते हैं। अज्ञानी जीव अपने अपने कर्मों से पृथक् पृथक् (भिन्न-भिन्न) रूप से संसार में स्थित है अथवा पृथक्-पृथक् संप रचते हैं।
विवेचन - भगवान् महावीर स्वामी के समय यह लोक मान्यता थी कि जिस योनि में जीव वर्तमान में हैं वह अगले जन्म में भी उसी योनि में उत्पन्न होगा। अर्थात् स्थावर, स्थावर रूप में और प्रस-प्रस रूप में ही उत्पन्न होंगे। भगवान् ने उपरोक्त गाथा से इसका युक्तियुक्त खंडन करते हुए प्रतिपादन किया है कि अपने अपने कर्मोदयवश जीवन एक योनि से दूसरी योनि में जन्म लेता है, उस स्थावर रूप में जन्म ले सकता है और स्थावर त्रस रूप में।
भगवती सूत्र शतक १२ उद्देशक ७ में गौतम स्वामी द्वारा यह पूछे जाने पर कि - 'हे भगवन्! यह जीव पृथ्वीकाय के रूप से लेकर त्रसकाय के रूप तक में पहले भी उत्पन्न हुआ है?'
भगवान् ने फरमाया - "हंता गोयमा! असई अदुवा अणंत खुत्तो जाव उववण्णपुये।' - हे गौतम! हाँ बारबार ही नहीं, अनंतबार सभी योनियों में जन्म ले चुका है।
- . पुनर्जन्म और सभी.योनियों में जन्म की इस बात को इस गाथा में स्पष्ट किया गया है।
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