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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) । RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRR
कठिन शब्दार्थ - अहासुयं - यथाश्रुत - जैसा मैंने सुना है, वइस्सामि - कहँगा, उठाए - उद्यत होकर, संखाए - जान कर, अहुणा - तत्काल, पव्वइए - प्रव्रजित होकर, .. रीइत्था - विहार किया।
भावार्थ - उन श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दीक्षा का अवसर जान कर हेमन्त ऋतु में दीक्षा ग्रहण करने के बाद जिस प्रकार तत्काल विहार किया था, उस विहार चर्या का वर्णन जैसा मैंने सुना है वैसा ही तुम से कहूँगा।
विवेचन - श्री सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य जम्बू स्वामी से कहते हैं किं हे आयुष्मन् जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् किये हुए विहार के विषय में जैसा मैंने सुना है वैसा ही तुम से कहूँगा।
भगवान् महावीर स्वामी ने समस्त. आभूषणों का त्याग कर पंचमुष्टि लोच करके हेमंत ऋतु में मार्गशीर्ष कृष्णा दसमी के दिन दीक्षा अंगीकार की और उसी समय विहार कर दिया था। उस समय उनके शरीर पर इन्द्र के द्वारा डाले हुए देवदूष्य वस्त्र के सिवाय कुछ नहीं था। उसी दिन भगवान् क्षत्रिय कुण्ड ग्राम से विहार करके कुर्मार ग्राम को एक मुहूर्त दिन शेष रहते पहुँच गये थे।
(४६३) णो चेविमेण वत्थेण, पिहिस्सामि तंसि हेमंते। ... से पारए आवकहाए, एयं खु अणुधम्मियं तस्स॥ .
कठिन शब्दार्थ - इमेण - इस, वत्थेण - वस्त्र से, पिहिस्सामि'- ढदूंगा, आवकहाएजीवन पर्यन्त, अणुधम्मियं - अनुधार्मिक - पूर्व तीर्थंकरों द्वारा आचरण किया हुआ।
भावार्थ - इस वस्त्र के द्वारा हेमंत ऋतु में अपने शरीर को ढकुंगा, इस भाव से भगवान् ने उस वस्त्र को धारण नहीं किया था क्योंकि वे जीवन भर के लिए सांसारिक सभी पदार्थों का त्याग कर चुके थे। इस देवदूष्य वस्त्र को धारण करना भगवान् के लिए अनुधार्मिक था यानी पूर्व तीर्थंकरों द्वारा आचरण किया हुआ कार्य था।
विवेचन - दीक्षा के समय कंधे पर डाले हुए देवदूष्य वस्त्र को भगवान् ने इस आशय से धारण नहीं किया था कि मैं इससे हेमंतऋतु में अपना शीत निवारण करूँगा अथवा लज्जा को ढकुंगा क्योंकि भगवान् जीवन पर्यंत के लिए प्रतिज्ञा का पालन करने वाले थे, उन्होंने संसार के
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