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छठा अध्ययन - चौथा उद्देशक - अहंकारी की कुचेष्टाएं
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विवेचन - कितनेक पुरुष संयम स्वीकार करके पुनः विषय भोगों में गृद्ध बन कर असंयम जीवन धारण कर लेते हैं। ऐसे पुरुषों का संयम स्वीकार करना निरर्थक है क्योंकि उनका जन्म मरण के चक्र से छुटकारा हो नहीं सकता। वे अपने आपको विद्वान् मानते हुए महापुरुषों की निंदा करते हैं और उनके ऊपर मिथ्या दोषारोपण करने से भी नहीं हिचकते हैं। अतः बुद्धिमान् साधु को चाहिये कि वह उपर्युक्त कार्यों से अलग रहता हुआ श्रुत चारित्र रूप धर्म को भलीभांति जानकर पालन करे।
अहंकारी की कुचेष्टाएं
(३७७) - अहम्मट्ठी तुमंसि णाम बाले, आरंभट्ठी अणुवयमाणे “हणपाणे" घायमाणे, हणओयावि समणुजाणमाणे “घोरे धम्मे उदीरिए" उवेहइ णं अणाणाए एस विसण्णे वियद्दे वियाहिए त्ति बेमि।
कठिन शब्दार्थ - अहम्मट्ठी - अधर्मार्थी, आरंभट्ठी - आरम्भार्थी, उवेहइ - उपेक्षा करता है, विसण्णे - कामभोगों में आसक्त, वियद्दे - हिंसक।
. भावार्थ - धर्म से पतित होने वाले अहंकारी साधक को आर्चायादि शिक्षा देते हैं - हे शिष्य! तुम अधर्मार्थी हो, बाल-अज्ञानी हो, आरंभार्थी हो - आरंभ में प्रवृत्त रहते हो। तुम इस प्रकार के वचन कहते हो-“प्राणियों का घात करो।" दूसरों से प्राणी वध कराते हो। प्राणी वध करने वालों का अनुमोदन करते हो। तीर्थंकर भगवान् ने संवर निर्जरा रूप घोर धर्म का प्रतिपादन किया है, ऐसा कह कर तुम धर्म की उपेक्षा करते हो और तीर्थंकर भगवान् की आज्ञा के विरुद्ध आचरण करते हो। ऐसा पुरुष विषय भोगों में आसक्त तथा प्राणियों का हिंसक कहा गया है - ऐसा मैं कहता हूँ। . विवेचन - तीर्थंकर भगवान् की आज्ञा की उपेक्षा करने वाले पुरुषों को लक्ष्य करके शास्त्रकार फरमाते हैं कि ऋद्धि गारव, रस गारव और साता गारव इन तीन गारवों में एवं कामभोगों में आसक्त बने हुए जीव पचन, पाचनादि क्रिया में प्रवृत्त होकर स्वयं हिंसा करते हैं, दूसरों से हिंसा करवाते हैं और हिंसा करने वालों का अनुमोदन. करते हैं। वे आरंभ में प्रवृत्ति करने वाले अज्ञानी हैं।
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