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________________ २२८ आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRE छठं अज्झायणं बीओ उद्देसो Bठे अध्ययन का द्वितीय उद्देशक प्रथम उद्देशक में स्वजन-परित्याग रूप मोह पर विजय प्राप्त करने का उपदेश दिया गया है। मोह पर विजय तभी हो सकती है जब कर्मों का विधूनन-क्षय किया जाय। इस द्वितीय उद्देशक में कर्म विधूनन का उपदेश दिया जाता है। इसका प्रथम सूत्र इस प्रकार हैं - चारित्र भ्रष्टता के कारण (३५०) आउरं लोयमायाए चइत्ता. पुव्वसंजोगं, हिच्चा उवसमं, वसित्ता बंभचेरंमि, वसु वा अणुवसु वा जाणित्तु धम्मं जहा तहा, अहेगे तमचाइ कुसीला, वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं विउसिज्जा, अणुपुव्वेण अणहियासेमाणा परीसहे दुरहियासए, कामे ममायमाणस्स, इयाणिं वा मुहत्तेण वा अपरिमाणाए भेओ एवं से अंतराइएहिं कामेहिं आकेवलिएहिं अवइण्णा चेए। ___ कठिन शब्दार्थ - आयाए - जानकर, हिच्चा - प्राप्त करके, वसित्ता - बस कर, वसु - साधु, अणुवसु - अनुवसु - श्रावक, पडिग्गहं - पात्र, पायपुंछणं - रजोहरण को, दुरहियासए- दुस्सह, अणहियासेमाणा - सहन न करते हुए, ममायमाणस्स - गाढ ममत्व रखने वाले का, अपरिमाणाए - अपरिमित काल में, अंतराइएहिं - अंतरायों से युक्त, आकेवलिएहिं - द्वन्द्वों (विरोधों) से युक्त, अवइण्णा - तृप्त हुए बिना ही।। भावार्थ - आतुर लोक को भली भांति जान कर पूर्व संयोग को छोड़कर उपशम भाव को प्राप्त कर ब्रह्मचर्य में वास करके साधु अथवा श्रावक धर्म को यथार्थ रूप से जान कर भी कुछ कुशील (मलिन चारित्र वाले) व्यक्ति उस धर्म का त्याग कर देते हैं अथवा उसका पालन करने में समर्थ नहीं होते। संयम के दुस्सह परीषहों को सहन नहीं करने के कारण कामभोगों में तीव्र आसक्त बने हुए उस पुरुष का इसी समय यानी प्रव्रज्या त्याग के बाद ही मुहूर्त मात्र में या अपरिमित समय में शरीर छूट जाता है। इस प्रकार वह भेगाभिलाषी पुरुष बहुत अन्तराय और . विघ्न बाधाओं से युक्त कामभोगों से तृप्त हुए बिना ही शरीर भेद को प्राप्त हो जाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004184
Book TitleAcharang Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages366
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size7 MB
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