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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) 8888888888888888888888888888888888888
(२३०) अहो य राओ य जयमाणे धीरे पया आगयपण्णाणे, पमत्ते बहिया पास अप्पमत्ते सया परक्कमिजासि त्ति बेमि।
॥ चउत्थं अज्झयणं पढमोद्देसो समत्तो॥ कठिन शब्दार्थ - अहो - दिन, राओ - रात, जयमाणे - यत्न करता हुआ, आगयपण्णाणे - आगत प्रज्ञान: - प्रज्ञावान्, विवेकवान्, बहिया - बाहर।
भावार्थ - दिन रात (अर्हनिश) मोक्षमार्ग में यत्न करते हुए हे धीर साधक! उन्हें देख जो प्रमादी हैं और धर्म से बाहर हैं अतः तू प्रमाद रहित होकर सदा संयम में मोक्ष मार्ग में पुरुषार्थ कर। ऐसा मैं कहता हूँ।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में प्रमत्त और अप्रमत्त व्यक्ति के जीवन का विश्लेषण किया गया है। जो लोग प्रमादी हैं व धर्म से बाहर हैं, यानी धर्माचरण से विमुख हैं। अतः उनका अनुकरण नहीं करते हुए मुमुक्षु पुरुष को चाहिए कि वह निद्रा विकथा आदि प्रमादों का त्याग कर निरन्तर मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रयत्न करे। .. ॥ इति चौथे अध्ययन का प्रथम उद्देशक समाप्त। चउत्थं अज्झयणं बीओ उद्देसो
चतुर्थ अध्ययन का द्वितीय उद्देशक चौथे अध्ययन के प्रथम उद्देशक में सम्यक्त्व का वर्णन किया गया है। इस दूसरे उद्देशक में कर्मबंध का कारण आस्रव तथा कर्म-मुक्ति का कारण संवर एवं निर्जरा का वर्णन किया जाता है। इसका प्रथम सूत्र इस प्रकार हैं -
आसव-परिसव
(२३१) जे आसवा ते परिसव्वा, जे परिसव्वा ते आसवा।
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