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________________ १३१ तीसरा अध्ययन - द्वितीय उद्देशक - संयमी आत्मा की विशेषताएं 88@@@@@@@@RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRR@@@@ विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में मृत्यु से मुक्त आत्मा की विशेषताओं का वर्णन किया गया है। शंका - साधक को मृत्यु की आकांक्षा नहीं करनी चाहिये फिर यहां आगमकार का 'कालकंखी' कहने क्या आशय है? समाधान - यहां काल का अर्थ है - मृत्युकाल, उसका आकांक्षी अर्थात् मुनि मृत्युकाल आने पर पंडित मरण की आकांक्षा (मनोरथ) करने वाला होकर संयम में विचरण करे। पंडित मरण जीवन की सार्थकता है। पंडित मरण की इच्छा करना मृत्यु को जीतने की कामना है अतः यहां पंडित मरण की अपेक्षा साधक को काल-कांक्षी कहा है। शंका - मरण पर्यंत संयम का पालन करने की क्या आवश्यकता है? समाधान - जीव के साथ इतने कर्म बंधे हुए हैं कि थोड़े काल में उनका क्षय होना संभव नहीं है अतः मरण पर्यंत संयम पालन की आवश्यकता है। (१८५) बहुं च खलु पावकम्मं पगडं, सच्चमि धिई कुव्वहा, एत्थोवरए मेहावी सव्वं पावकम्मं झोसेइ। कठिन शब्दार्थ - बहुं - बहुत, पावकम्मं - पापकर्म, कडं - किये, सच्चंमि - सत्यसंयम में, धिई - धीरता, कुव्वहा - कर, एत्थोवरए - इस (संयम) में उपरत, झोसेइ - क्षय कर देता है। भावार्थ - निश्चय ही इस जीव ने बहुत पापकर्म किये हैं। सत्य यानी संयम में धीरता (धैर्य-धृति) रखो। इस संयम में स्थित मेधावी (बुद्धिमान्) पुरुष समस्त पाप कर्मों को क्षय कर देता है। विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में साधक को सत्य (संयम) में स्थिर रहने का महत्त्व बताया गया है। टीकाकार ने सत्य के निम्न अर्थ किये हैं - १. प्राणियों के लिए जो हित है, वह सत्य है - वह है संयम। - २. जिनेश्वर द्वारा उपदिष्ट आगम भी सत्य है क्योंकि वह यथार्थ वस्तु-स्वरूप को प्रकाशित करता है। ३. वीतराग द्वारा प्ररूपित विभिन्न प्रवचन रूप आदेश भी सत्य है। सत्य में धीरता रखने वाला पुरुष समस्त कर्मों को क्षय कर देता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004184
Book TitleAcharang Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages366
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size7 MB
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