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तीसरा अध्ययन - प्रथम उद्देशक - दुःख मुक्ति का उपाय
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(१६६) लोयंसि जाण अहियाय दुक्खं। भावार्थ - इस लोक में अज्ञान (दुःख) अहित के लिए हैं - यह जानो।
(१६७) समयं लोगस्स जाणित्ता, एत्थ सत्थोवरए।
कठिन शब्दार्थ - समयं - आचार (समता) को, सत्थोवरए - शस्त्रोपरतः - शस्त्र से उपरत हो। ... भावार्थ - लोक के इस आचार - समत्व भाव को जान कर संयमी पुरुष जो शस्त्र हैं उनसे उपरत रहे।
विवेचन - सूत्रकार ने अज्ञान को दुःख का कारण और ज्ञान को सुख का कारण कहा है अतः प्रस्तुत सूत्र में इस बात पर जोर दिया गया है कि साधक को संयम एवं आचार के स्वरूप को जानकर उसका पालन अज्ञान के उन्मूलन के लिये करना चाहिये और छह काय की हिंसा रूप शस्त्र का त्याग कर देना चाहिये।
दुःख मुक्ति का उपाय
(१६८) जस्सिमे सदा य-रूवा य-गंधा य-रसा य फासा य-अभिसमण्णागया भवंति, से आयवं-णाणवं-वेयणं-धम्मवं-बंभवं-पण्णाणेहिं परियाणइ लोयं मुणीति वच्चे धम्मविऊत्ति अंजू आवट्टसोए संगमभिजाणइ सीउसिणच्चाई, से णिगंथे, अरइरइसहे फरुसयं णो वेएइ जागरवेरोवरए वीरे एवं दुक्खा पमुक्खसि।
— कठिन शब्दार्थ - अभिसमण्णागया - अभिसमन्वागत - पूर्ण रूप से ज्ञात, आयवं - आत्मवान्, णाणवं - ज्ञानवान्, वेयवं - वेदवान्, धम्मवं - धर्मवान्, बंभवं - ब्रह्मवान्, पण्णाणेहिं - मति श्रुत आदि ज्ञानों से, परियाणइ - जानता है, धम्मविऊत्ति - धर्मवेत्ता, अंजू - सरल, आवट्टसोए - आवर्त स्रोत - संसार चक्र और विषयाभिलाषा के, संगं - संग को, अभिजाणइ - जानता है, सीउसिणच्चाई - शीतोष्ण त्यागी, अरइरइसहे - अरति और
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