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________________ आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) भावार्थ - इस प्रकार कर्म को जान कर सर्व प्रकार से (सर्वथा) त्याग करे। दुःख दुःख शब्द से के कारणों का भी ग्रहण किया है। दुःख विवेचन प्रस्तुत सूत्र में का मुख्य कारण राग द्वेष या अध्ययन में भी प्रभु ने दुःख का कारण कर्म बताते हुए फरमाया है राग द्वेष से बंधने वाले कर्म हैं। उत्तराध्ययन सूत्र के ३२ वें - ११२ कम्मं च जाई मरणस्स मूलं, दुक्खं च जाई मरणं वयंति । अर्थात् - जन्म और मरण दुःख है और जन्म मरण का मूल है कर्म । अतः कर्म ही वास्तव में दुःख है। कुशल पुरुष उस दुःख से मुक्त होने का विवेक फरमाते हैं। दुःख, कर्मकृत है अतः कर्मों के स्वरूप को तथा आस्रव द्वारों को समझ कर तीन करण तीन योग से उनका त्याग कर देना चाहिए। अनन्यदर्शी और अनन्याराम - (१५४) जे अणण्णदंसी से अणण्णारामे, जे अणण्णारामे से अणण्णदंसी । कठिन शब्दार्थ अणण्णदंसी - अनन्यदर्शी - यथार्थ वस्तु तत्त्व को देखने वाला, अण्णारा अनन्याराम - मोक्ष मार्ग से अन्यत्र रमण नहीं करने वाला । भावार्थ - जो अनन्यदर्शी (आत्मा को देखने वाला) है वह अनन्याराम (आत्मा में रमण करने वाला) है और जो अनन्याराम है वह अनन्यदर्शी है। विवेचन प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त 'अणण्णदंसी' और 'अणण्णारामे' की व्याख्या इस प्रकार की गई है - - Jain Education International - - 'अन्यद्द्द्रष्टुंशीलमस्येत्यन्यदर्शी यस्तथा नावावनन्यदर्शी - यथावस्थित-पदार्थ द्रष्टा, कश्चैवं भूतो ? यः सम्यग्दृष्टि मौनीन्द्र प्रवचना विर्भूततत्त्वार्थी, यश्चानन्यदृष्टिः सोऽनन्यारामो मोक्षमार्गादिन्यत्र न रमते । ' अर्थात् - जो व्यक्ति यथार्थ द्रष्टा होता है वह जिनेन्द्र भगवान् द्वारा प्ररूपित सिद्धान्त के अतिरिक्त अन्यत्र रमण नहीं करता और जो अपने चिंतन-मनन, विचारणा एवं आचरण को अन्यत्र नहीं लगाता वही अनन्यदर्शी - तत्त्वदर्शी है, परमार्थदर्शी है। - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004184
Book TitleAcharang Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages366
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size7 MB
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