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दूसरा अध्ययन - पांचवाँ. उद्देशक - देह की अशचिता
१०३ 密密密密密部密密密密密密密密密聯部部密密密够带密密密密密密密部密够够帮举參參參參參參參參參
'- कठिन शब्दार्थ - कासंकसे - यह कार्य मैंने किया और यह कार्य करूंगा, बहुमाई - बहुमायी - बहुत माया करता है, वेरं - वैर, वढेइ - बढ़ाता है। ___ भावार्थ - कामभोगों में आसक्त पुरुष यह सोचता है कि - मैंने यह कार्य कर लिया
और यह कार्य करूंगा, इस आकुलता के कारण वह बहुत माया करता है और किंकर्त्तव्यमूढ़ होकर दुःख भोगता है। वह बार-बार विषयभोग का लोभ करता है और जीवों के साथ अपनी आत्मा का वैर भाव बढ़ाता है।
(१३८) . जमिणं परिकहिज्जइ इमस्स चेव पडिबूहणयाए अमरायइ महासड्डी अट्टमेयं तु पेहाए। ___ कठिन शब्दार्थ - परिकहिज्जइ - कहा जाता है, पडिबूहणयाए - वृद्धि के लिए, अमरायइ - देव के समान मानता है, महासड्डी - महान् श्रद्धा रखने वाला, अर्ट - आर्त्त-दुःख को।
. भावार्थ - जिससे यह कहा जाता है कि इस शरीर की वृद्धि के लिए अज्ञानी जीव पूर्वोक्त क्रियाएं करता है। वह कामभोगों में महान् श्रद्धा (आसक्ति) रखता हुए अपने को अमर की भांति समझता है। देव के समान आचरण करता है। तू देख! विषयासक्त पुरुष आर्त यानी दुःख को प्राप्त होता है।
(१३६) अपरिणाए कंदइ से तं जाणह जमहं बेमि। कठिन शब्दार्थ - कंदइ - क्रन्दन करता है - रोता है, बेमि - कहता हूं।
भावार्थ - कामभोगों के परिणाम को नहीं जानने से अर्थात् सम्यक् बोध को प्राप्त कर उनका त्याग नहीं करने से कामी पुरुष तज्जन्य दुःखों को प्राप्त कर क्रन्दन करता है (रोता है) अतः तुम उसे जानो, जो मैं कहता हूं।
विवेचन - भोगासक्ति का अंतिम परिणाम क्रन्दन - रोना ही है - यह जान कर विवेकी पुरुषों को कामभोगों का सर्वथा त्याग कर देना चाहिये।
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