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____ आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) hasha cha cha cha cha 88 # # # RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRR* कालानुष्ठायी (उचित समय पर उचित कार्य करने वाला) और निदान नहीं करने वाला है। वह राग और द्वेष दोनों का छेदन कर नियम पूर्वक संयम के अनुष्ठान में रत रहे।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में आये हुए कालण्णे आदि शब्दों का विशेष अर्थ इस प्रकार हैं
१. कालण्णे (कालज्ञ) - काल - प्रत्येक आवश्यक क्रिया के उपयुक्त समय को जानने वाला। समय पर अपना कर्त्तव्य पूरा करने वाला कालज्ञ होता है।
___२. बलण्णे (बल) - अपनी शक्ति एवं सामर्थ्य को पहचानने वाला तथा शक्ति का तप, सेवा आदि में योग्य उपयोग करने वाला।
. ३. मायण्णे (मात्रज्ञ) - उपयोग में आने वाली प्रत्येक वस्तु भोजन, पानी आदि का परिमाण-मात्रा जानने वाला।
____४. खेयण्णे (खेदज्ञ, क्षेत्रज्ञ) - दूसरों के दुःखों को जानने वाला खेदज्ञ एवं क्षेत्र अर्थात् जिस समय व जिस स्थान पर भिक्षा के लिए जाना हो उसका भलीभांति ज्ञान रखने वाला। आत्मा को क्षेत्र' कहते हैं अतः आत्मा के यथार्थ स्वरूप को जानने वाला।
५. खणयण्णे (क्षणज्ञ) - क्षण अर्थात् समय को जानने वाला। शंका - काल और क्षण में क्या अंतर हैं?
समाधान - दीर्घ अवधि के समय को 'काल' कहते हैं जैसे दिन-रात, पक्ष आदि। छोटी अवधि का समय अथवा वर्तमान समय ‘क्षण' कहलाता है।
६. विणयण्णे (विनयज्ञ) - बड़ों एवं छोटों के साथ किया जाने वाला व्यवहार 'विनय' कहलाता है, ऐसे व्यवहार का जो ज्ञाता हो वह 'विनयज्ञ' है अथवा ज्ञान-दर्शन-चारित्र को विनय कहा गया है अतः रत्नत्रयी के सम्यक् स्वरूप को जानने वाला 'विनयज्ञ' है। विनय का एक अर्थ आचार भी होता है अतः आचार का सम्यक् ज्ञाता भी विनयज्ञ कहलाता है।
७. ससमयण्णे (ससमयज्ञ) - स्व-समय - स्व सिद्धान्त को जानने वाला। . ८. परसमयण्णे (परसमयज्ञ). - परसमय - पर सिद्धान्त को जानने वाला।
६. भावण्णे (भावज्ञ) - व्यक्ति के भावों - चित्त के अव्यक्त आशय को उसके हावभाव-चेष्टा एवं विचारों से ध्वनित होते गुप्त भावों को समझने में कुशल व्यक्ति भावज्ञ कहलाता है। - १० परिग्गहं अममायमाणे - साधु संपूर्ण परिग्रह के त्यागी होते हैं। यहाँ शरीर और
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