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आचारांग सूत्र (प्रथम श्रुतस्कन्ध) 來來參參參參非率來來華參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參 अप्पणो से पुत्ताणं, धूयाणं, सुण्हाणं णाईणं, धाईणं, राईणं, दासाणं, दासीणं, कम्मकराणं, कम्मकरीणं, आएसाए, पुढो पहेणाए, सामासाए, पायरासाए, संणिहि-संणिचओ कज्जइ, इहमेगेसिं माणवाणं भोयणाए। __कठिन शब्दार्थ - कम्मसमारंभा - कर्म समारम्भ, कज्जंति - करते हैं, पुत्ताणं - पुत्रों के लिए, धूयाणं - पुत्रियों के लिए, सुण्हाणं - पुत्र वधुओं के लिए, णाईणं - ज्ञातिजनों के लिए, धाईणं - धाई के लिए, राईणं - राज के लिए, दासाणं - दासों के लिए, दासीणं - दासियों के लिए, कम्मकराणं - कर्मचारियों के लिए, कम्मकरीणं - कर्मचारिणियों के लिए, आएसाए - अतिथियों के लिए, पुढो पहेणाए - विभिन्न लोगों को देने के लिए, सामासाए - सायंकालीन भोजन के लिए, पायरासाए - प्रातःकालीन भोजन के लिए, संणिहि - संणिचओसन्निधि (दूध दही आदि पदार्थों का संग्रह) सन्निचय (चीनी, गुड़, अन्न आदि पदार्थों का संग्रह)। .
भावार्थ - असंयमी अज्ञानी पुरुष नाना प्रकार के शस्त्रों द्वारा लोक के लिए (अपने एवं दूसरों के लिए) कर्म समारंभ करते हैं। जैसे कि - अपने पुत्रों, पुत्रियों, पुत्रवधुओं, ज्ञातिजनों, धाई, राजा, दासों, दासियों, कर्मचारियों, कर्मचारिणियों, अतिथियों आदि के लिए तथा विभिन्न लोगों को देने के लिए, सायंकालीन एवं प्रातःकालीन भोजन के लिए। इस प्रकार वे कितनेक मनुष्यों के भोजन के लिए सन्निधि और सन्निचय-खाद्य पदार्थों का संग्रह करते हैं। .
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में सूत्रकार ने 'मनुष्य कर्म समारंभ में क्यों प्रवृत्त होता है?' इसके अनेक कारणों का उल्लेख किया है।
किसी इष्ट वस्तु की प्राप्ति एवं अनिष्ट पदार्थ संयोग को नष्ट करने के लिए प्राणातिपात - हिंसा आदि दोषों की मन में कल्पना करना, उनका चिंतन करना 'सारम्भ' कहलाता है। अपने द्वारा चिंतित विचारों को साकार रूप देने के लिए तद्रूप साधनों या शस्त्रों का संग्रह करना 'समारम्भ' है तथा उक्त विचारों को कार्य रूप में परिणत करने के लिए उन शस्त्रों का प्रयोग करना आरम्भ' कहलाता है।
इस प्रकार विभिन्न कार्यों के लिए सारम्भ, समारम्भ और आरम्भ में प्रवृत्त जीव आठ कर्मों का बन्ध करता है।
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