________________
το
णत्थि कालस्स णागमो ।
भावार्थ
-
आचारांग सूत्र ( प्रथम श्रुतस्कन्ध )
89
काल का अनागमन नहीं है अर्थात् मृत्यु का समय अनिश्चित है । मृत्यु किसी भी क्षण आ सकती है।
-
܀܀܀܀܀܀
अहिंसा का प्रतिपादन
(६२)
सव्वे पाणा पियाउया, सुहसाया, दुक्खपडिकूला, अप्पियवहा, पियजीविणो, जीविउकामा ।
कठिन शब्दार्थ - पियाउया आयुष्य प्रिय है, सुहसाया सुख चाहने वाले, दुक्खपडिकूला - दुःख प्रतिकूल, अप्पियवहा :- वध अप्रिय, पियजीविणो है, जीविउकामा - जीवन की इच्छा करने वाले ।
जीवन प्रिय
भावार्थ सब प्राणियों को अपना आयुष्य प्रिय है। सभी प्राणी सुख भोगना चाहते हैं । दुःख सबको प्रतिकूल है। सभी को वध अप्रिय है। सभी को अपना जीवन प्रिय है। वे जीवित रहना चाहते हैं।
Jain Education International
(29)
सव्वेसिं जीवियं पियं
प्रस्तुत सूत्र में स्पष्ट किया गया है कि सभी जीव जीना चाहते हैं। सभी को सुख प्रिय और दुःख अप्रिय है अतः किसी भी जीव की हिंसा नहीं करनी चाहिए। इसी बात को दशवैकालिक सूत्र अध्ययन ६ गाथा ११ में इस प्रकार कहा है
-
"सव्वे जीवा वि इच्छंति जीविउं ण मरिज्जिउं।"
'पियाउया' के स्थान पर 'पियायया' पाठान्तर भी मिलता है जिसका अर्थ है
'प्रिय
आयतः' अर्थात् जिन्हें अपनी आत्मा प्रिय है, जगत् के सभी प्राणी । कोई भी आत्मा अपने पर होने वाले आघात को नहीं चाहता है अतः साधक को चाहिये वह किसी भी प्राणी को पीड़ा
न पहुँचाए।
-
(१३)
-
For Personal & Private Use Only
-
www.jainelibrary.org