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अनुयोगद्वार सू
यावत् ज्ञाता यदि अनुपयुक्त हो तो उसे अवस्तु (असत्) माना जाता है क्योंकि जो ज्ञाता होता है, वह उपयोग शून्य नहीं होता तथा जो अनुपयुक्त होता है, वह ज्ञाता नहीं होता, इसलिए वह आगमतः द्रव्यानुपूर्वी नहीं होता । यह आगमतः द्रव्यानुपूर्वी का स्वरूप है।
से किं तं णोआगमओ दव्वाणुपुव्वी ?
आगमओ दव्वाणुपुवी तिविहा पण्णत्ता । तंजहा - जाणयसरीरदव्वाणुपुव्वी १ भवियसरीरदव्वाणुपुव्वी २ जाणयसरीर - भवियसरीरवइरित्ता दव्वाणुपुवी ३ । भावार्थ - नोआगमतः द्रव्यानुपूर्वी किस प्रकार की है?
नो आगमतः द्रव्यानुपूर्वी तीन प्रकार की प्रतिपादित हुई है
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१. ज्ञ शरीर द्रव्यानुपूर्वी २. भव्य शरीर द्रव्यानुपूर्वी ३. ज्ञ शरीर भव्य शरीर व्यक्तिरिक्त द्रव्यानुपूर्वी ।
से किं तं जाणयसरीरदव्वाणुपुव्वी ?
जाणयसरीरदव्वाणुपुव्वी 'आणुपुव्वि' पयत्थाहिगारजाणयस्स जं. सरीरयं ववगयचुयचावियचत्तदेहं सेसं जहा दव्वावस्सए तहा भाणियव्वं जाव सेत्तं जाणयसरीरदव्वाणुपुव्वी ।
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भावार्थ
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ज्ञ शरीर द्रव्यानुपूर्वी का क्या स्वरूप है?
जिसने आनुपूर्वी पद के अर्थाधिकार को जाना है, उसे चेतना रहित, प्राण शून्य, अनशन द्वारा मृत देह को देखकर कोई कहे... इत्यादि शेष वर्णन ज्ञ शरीर द्रव्यावश्यक की तरह कथनीय है यावत् यह ज्ञ शरीर द्रव्यानुपूर्वी का निरूपण है।
से किं तं भवियसरीरदव्वाणुपुव्वी ?
भवियसरीरदव्वाणुपुष्वी-जे जीवे जोणी जम्मणणिक्खते सेसं जहा दव्वावस्सए जावसेत्तं भवियसरीरदव्वाणुपुवी ।
भावार्थ भव्य शरीर द्रव्यानुपूर्वी का क्या स्वरूप है?
योनिरूप जन्म स्थान से निःसृत किसी जीव का शरीर ..... इत्यादि शेष वर्णन भव्य शरीर द्रव्यावश्यक की तरह योजनीय है यावत् यह भव्य शरीर द्रव्यानुपूर्वी का विवेचन है। से किं तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ता दव्वाणुपुव्वी?
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