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अनुगम - अनुयोग द्वार का तीसरा अनुगम द्वार है। जिसके द्वारा सूत्र का अनुसरण अथवा सूत्र के अर्थ का स्पष्टीकरण किया जाता है। अनुगम की शैली से शास्त्रीय पदों की व्याख्या करना सरल हो जाता है। यह आगम अध्ययन की सरल पद्धति है।
नय - अनुयोग द्वार का चौथा द्वार है नय। प्रत्येक वस्तु अनन्त धर्मात्मक वाली होती है, उन सम्पूर्ण धर्मों का यथार्थ और प्रत्यक्ष ज्ञान तो केवल सर्वज्ञ सर्वदर्शी वीतराग प्रभु को ही हो सकता है। सामान्य मानव के सामर्थ्य की बात नहीं है। सामान्य मानव एक समय में कुछ धर्मों का ज्ञान कर पाता है। अतएव वस्तु के आंशिक ज्ञान को नय कहते हैं यानी वस्तु में रहे अनन्त धर्मों का विरोध न करते हुए, वस्तु के एक अंग या धर्म की ग्रहण करने वाले ज्ञान का अभिप्राय नय है। वैसे तो वचन के जितने प्रकार हैं उतने ही नय भी हो सकते हैं। किन्तु अनुयोगद्वार में मुख्य सात नयों का वर्णन है - १. नैगमनय २. संग्रहनय ३. व्यवहारनय ४. ऋजुसूत्रनय ५. शब्दनय ६. समभिरुढनय एवं ७. भूतनय।
अनुयोगद्वार सूत्र के रचयिता आर्य रक्षित माने जाते हैं। इस आगम की रचना से पूर्व आचार्य अपने सभी मेघावी शिष्यों को शास्त्र की वाचना देते समय चारों अनुयोगों का बोध करा देते थे। तब अनुयोग द्वार सूत्र की आवश्यकता नहीं रहती। तत्पश्चात् बुद्धि की मंदता के कारण प्रत्येक सूत्र के अनुयोग की परम्परा चालू हुई। . .
'नन्दी सूत्र में (श्रुतज्ञान के वर्णन में) दशपूर्वी एवं उससे अधिक ज्ञान वालों की रचना को सम्यक् श्रुत कहा है। इसलिए स्थानकवासी परम्परा दशादि पूर्वधरों की रचना को आगम मानती हैं।'
अब प्रस्तुत अनुयोगद्वार सूत्र के विषय में - कतिपय आगमिक विचारणा की जाती है -
'वस्तुतः अनुयोगद्वार सूत्र नहीं है। अनुयोग व्याख्या पद्धति है। आर्य रक्षित के पूर्व जब तक अनुयोग का पृथक्करण नहीं होने से कालिक श्रुत अमूढनयिक था। जैसा कि प्राचीन ग्रन्थों में बताया है - ."मूढनयं कालियं सुयं, म णया समोयरंति इह।
अपुहुत्ते समोयारो, णत्थि पुहुत्ते समोयारो॥" ___अर्थ - “कालिक श्रुत मूढनयिक है" - अविभक्तनयों से युक्त हैं, इसलिए कालिक श्रुत में नयों का समवतार (समावेश) नहीं होता तथा चरण करणानुयोग, धर्मकथानुयोग, गणितानुयोग और द्रव्यानुयोग इस प्रकार चार अनुयोगों की अपृथक् अवस्था में नयों का समवतार प्रत्येक सूत्र
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