SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४ अनुयोगद्वार सूत्र (५७) से किं तं णोआगमओ भावखंधे ? णोआगमओ भावखंधे एएसं चेव सामाइयमाइयाणं छण्हं अज्झयणाणं समुदयसमिइसमागमेणं णिप्फण्णे आवस्सयसुयखंधे 'भावखंधे' त्ति लब्भइ । सेत्तं णो आगमओ भावखंधे । सेत्तं भावखंधे । शब्दार्थ - एएसिं- इनके, सामाइयमाइयाणं - सामायिक आदि, छण्हं अज्झयणाणंछह अध्ययनों के, समुदयसमिइसमागमेणं - समुदाय के समुचित रूप में मिलने से, णिफण्णेपूर्ण होने से, लब्भइ प्राप्त होता है। भावार्थ - नोआगमतः भाव स्कन्ध कैसा होता है? परस्पर समुचित रूप में संबद्ध सामायिक आदि छह अध्ययनों (के समुदाय) के सम्मिलन से आवश्यक श्रुत स्कन्ध नोआगमतः भाव स्कन्ध प्राप्त - निष्पन्न होता है। यह नोआगमतः भाव स्कन्ध का स्वरूप है। भाव स्कन्ध इस प्रकार का है। (५८) स्कन्ध के पर्याय सूचक शब्द तस्स णं इमे एगट्टिया णाणाघोसा णाणावंजणा णामधेज्जा भवंति, तंजहा गाहा - गण काय णिकाए, खंधे वग्गे तहेव रासी य । पुंजे पिंडे णिगरे, संघाए आउलसमूहे ॥ १ ॥ Jain Education International सेत्तं खंधे । शब्दार्थ - एगट्ठिया - एकार्थक, णाणाघोसा - भिन्न-भिन्न ध्वनि युक्त, णाणावंजणाविभिन्न व्यंजन युक्त, णामधेज्जा - नाम, भवंति - होते हैं। भावार्थ - उस भाव स्कन्ध के भिन्न-भिन्न ध्वनियुक्त तथा विविध व्यंजन युक्त एकार्थक अनेक नाम हैं। वे इस प्रकार हैं - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004183
Book TitleAnuyogdwar Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages534
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anuyogdwar
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy