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अनुयोगद्वार सूत्र
औपचारिक आवश्यकों का स्वतः प्रतिवाद या प्रतिषेध हो जाता है। अतः भावपूर्वक शुद्ध क्रिया के पालक साधु के जीवन के साथ इसकी संलग्नता है।
(२३)
आगम भावावश्यक से किं तं आगमओ भावावस्सयं? आगमओ भावावस्सयं जाणए उवउत्ते। सेत्तं आगमओ भावावस्सयं। शब्दार्थ - जाणए - ज्ञाता, उवउत्ते - उपयोग युक्त। भावार्थ - आगमतः भावावश्यक क्या है?
जो आवश्यक का ज्ञायक-ज्ञाता हो तथा साथ ही साथ उपयोगयुक्त हो, उसे आगमतः भावावश्यक कहा गया है।
विवेचन - "चेतना-व्यापारः उपयोगः" - चेतना के व्यापार कार्य या उद्यम को उपयोग कहा जाता है। वह ज्ञान का प्रवृत्तिमूलक रूप है। जिसे आवश्यक पद का ज्ञान हो और साथ ही साथ उसमें तदनुरूप अनुभूतिजन्य प्रवृत्ति हो, वह भावावश्यक है।
(२४)
नो आगम भावावश्यक से किं तं णोआगमओ भावावस्सयं?
णोआगमओ भावावस्सयं तिविहं पण्णत्तं। तंजहा - लोइयं १ कुप्पावयणियं २ लोगुत्तरियं ३।
भावार्थ - नो आगम आवश्यक का स्वरूप कैसा है? यह तीन प्रकार का परिज्ञापित हुआ है - १. लौकिक २. कुप्रावनिक और ३. लोकोत्तरिक।
(२५)
लौकिक भावावश्यक से किं तं लोइयं भावावस्सयं?
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